हिमाचल की सियासत: कांग्रेस से पलायन तो 'आप' का स्वागत

2014 में कांग्रेस की सहयोगी दलों के साथ 13 राज्यों में सरकारें थी। 2018 आते-आते उसी स्थिति बिगड़ी और महज दो राज्यों की सत्ता में रह गई थी और अब पांच राज्यों में है, मगर नेता छोड़कर जा रहे हैं। 
 | 
कांग्रेस पांच ही राज्यों में सिमटकर रह गई है और भाजपा का परचम कई राज्यों में लहरा रहा है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों ने कांग्रेस को कमजोर किया है और भाजपा को और अधिक मजबूत।

आज हमारी सरकार मात्र एक वोट से गिर गई है। हमारे कम सदस्य होने पर कांग्रेस हम पर हंस रही है। लेकिन मेरी बात कांग्रेस कतई न भूले। एक दिन ऐसा आएगा जब  पूरे भारत में हमारी सरकार होगी और पूरा देश कांग्रेस पर हंस रहा होगा। -अटल बिहारी वाजपयी,  1999 सरकार गिरने पर।

शुरुआत में आपने जो पड़ा आज कमोबेश वही स्थिति पैदा हो चुकी है। कांग्रेस पांच ही राज्यों में सिमटकर रह गई है और भाजपा का परचम कई राज्यों में लहरा रहा है। हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों ने कांग्रेस को कमजोर तो भाजपा को और अधिक मजबूत किया। चुनावों में कांग्रेस पंजाब की सत्ता भी गंवा बैठी। उसे गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में एंटी इंकम्बेंसी के सहारे वापसी की उम्मीद थी, लेकिन यहां भी भाजपा ने उसे बुरी तरह पटखनी दे डाली। उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस महज दो सीटों पर सिमट गई।

यह भी पढ़ेंः-हिमाचल में झटका: युकां प्रदेशाध्यक्ष ने छोड़ा कांग्रेस का हाथ, 23 नेता ने थामा 'आप' का झाड़ू

10 मार्च को आए चुनावी नतीजों ने पूर्व पीएम वाजपयी के 25 साल पुराने बयान को ताजा कर दिया। इसलिए सबसे पहले शुरुआत उसी से की। आज कांग्रेस चौतरफा घिरी है। विरोधियों ही नहीं, अपनों के सवालों से भी जूझ रही है। पार्टी के भीतर बने जी-23 गुट ने हमले तेज कर दिए हैं। सोनिया गांधी पर दबाव बढ़ गया है। कई युवा नेता पहले ही पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं और पुराने दिग्गज खफा बैठे हैं। विपक्ष कांग्रेस की खिल्ली उड़ा रहा है। और कई युवा नेता और कार्यकर्ता अब हिमाचल से भी कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में जा रहे हैं। यह कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। 

यह भी पढ़ेंः-सीएम जयराम बोले-हिमाचल में जीत का सपने भूल जाएं कांग्रेस और आप

2014 तक कांग्रेस 13 राज्यों पर काबिज थी
2014 में कांग्रेस की सहयोगी दलों के साथ 13 राज्यों में सरकारें थी। 2018 आते-आते उसी स्थिति बिगड़ी और वह महज दो राज्यों में ही सत्ता में रह गई। अगले कुछ सालों में उसकी स्थिति में सुधार आया, लेकिन अब 2022 में वह पांच राज्यों में ही काबिज है। इनमें से भी तीन राज्यों तमिलनाडु, महाराष्ट्र और झारखंड में गठबंधन सरकार है और कांग्रेस की अपनी सीटें बहुत कम हैं। कांग्रेस के पास अपने दम पर एक बड़ा राज्य राजस्थान ही रह गया है।  पार्टी बिखर चुकी है और 2024 के आम चुनाव में वह मजबूत भाजपा से किस तरह मुकाबला करेगी, इसका कोई रोडमैप नहीं दिखता।

यह भी पढ़ेंः-पंजाब में अब 'आप' की सरकार, क्या बदलेगा हिमाचल का सियासी परिदृश्य

हिमाचल में युवा कांग्रेस नेताओं का पलायन
सोमवार को हिमाचल में कांग्रेस का बड़ा झटका मिला। कांग्रेस की युवा इकाई के प्रदेशाध्यक्ष मनीष ठाकुर सहित 23 नेताओं ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। युवा कांग्रेस के पदाधिकारियों के पलायन पर मंथन करने की बजाय कांग्रेसी उनका उपहास उड़ा रहे हैं। यही कारण है कांग्रेस से अन्य लोगों के पलायन की संभावनाएं बढ़ गई हैं। जो कांग्रेस हिमाचल में 60 और 8 के दावे कर रही थी, आज उसका अपना कुनबा बिखर रहा है, जिसे बचाना मुश्किल हो रहा है। इसी साल चुनाव होने हैं और चुनावों से पूर्व नेताओं का यूं जाने कांग्रेस के लिए एक रिंगिंग वेल है, जो अलर्ट कर रही है।

यह भी पढ़ेंः-हिमाचलः सीएम जयराम के गृह जिला मंडी में आप नेता सत्येंद्र जैन ने डाला डेरा

आप से कांग्रेस को ही ज्यादा नुकसान
यह तय है कि हिमाचल में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान करेगी। जिन सीटों पर हार जीत में ज्यादा अंतर नहीं होता, वहां तीसरा सबसे ज्यादा नुकसान करता है। यदि कांग्रेस ने अपना कुनबा नहीं संभाल तो हिमाचल में भाजपा मिशन रिपीट करेगी। एक बात अभी से साफ है कांग्रेस का कुनबा अगर बिखरने से नहीं रुका तो विपक्ष में बैठने लायक भी नेता नही बचेंगे। आम आदमी पार्टी सीट चाहे जीते न जीते लेकिन कांग्रेस से आप में जाने वाले नेता कांग्रेस को ही ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे। अभी वक्त है हिमाचल कांग्रेस के पास मंथन और मनन करने का, किस पार्टी को बिखरने से बचाएं

 

यह भी पढ़ेंः-हिमाचल में आप ने बिछा दी चुनावी बिसात, प्रदेश में हर चुनाव लड़ेगी

 

हिमाचल कांग्रेस के लिए मंथन की घड़ी
पंजाब चुनाव के बाद जैसी स्थिति हिमाचल कांग्रेस में उपजी है, अगर ऐसे भाजपा में होता तो भाजपा अपने लोगों को रोकने के लिए कुछ भी करती। मगर कांग्रेस जाने वालों का उपहास उड़कर उन्हें और उकसा रही है। जिस कार्यकर्ता ने अपनी जिंदगी एक पार्टी के लिए लगाई और उसे सिर्फ एक नेता के लिए छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ता है। कभी भी कार्यकर्ता के लिए ये फैसला इतना आसान नहीं होता। मगर बड़े नेता पार्टी बदलते हैं तो उन्हें टिकट का लालच होता है, लेकिन कार्यकर्ता किसी भी पार्टी का हो आसानी से अपनी पार्टी छोड़कर नहीं जाता। कांग्रेस फिर मंथन करें वरना 5 साल फिर से बाहर बैठने को तैयार रहें। 

फेसबुक पर हमसे जुड़ने के लिए यहांक्लिक  करें। साथ ही और भी Hindi News (हिंदी समाचार) के अपडेट पाने के लिए हमेंगूगल न्यूज पर फॉलो करें।