हिमाचल प्रदेश में 138 Special Educator की भर्ती होगी, चयन आयोग करेगा चयन, नियम अधिसूचित
शिमला। हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में प्री प्राइमरी (Pre-Primary) से लेकर पांचवीं कक्षा तक पढ़ने वाले विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए 138 स्पेशल एजुकेटर (Special Educator) की भर्ती की जाएगी। स्पेशल एजुकेटर की भर्ती से संबंधित नियमों को हिमाचल प्रदेश सरकार ने राजपत्र (Himachal Gazette) में अधिसूचित कर दिया है।
शिक्षा विभाग ने 21 साल बाद तृतीय श्रेणी (Group-C) के पदों पर नियमित भर्ती (Regular Basis Job In himachal) की जाएगी। प्राइमरी स्तर पर इन Special Educator को नियुक्त किया जाएगा। यह भर्ती हिमाचल प्रदेश राज्य चयन आयोग, हमीरपुर (Rajya Chayan Aayog, Hamirpur) द्वारा की जाएगी। भर्ती के लिए पात्र आयु सीमा 18 से 45 वर्ष होगी।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2003 के बाद पहली बार Group-C पदों पर Regular Recruitment होने जा रही है। 21 वर्षों से आयोग के माध्यम से केवल Contract Basis पर ही भर्तियां हो रही थीं। Supreme Court और High Court के हस्तक्षेप के बाद इस बार की स्पेशल एजुकेटर की भर्ती में यह पुरानी व्यवस्था लागू की गई है। भविष्य में भर्ती नियमों में Contract Basis पर नियुक्तियों का प्रावधान रखा गया है।
पहली से पांचवीं कक्षा के बच्चों को पढ़ाने वाले इन 138 Special Educator के लिए 12वीं कक्षा में 50% अंक की योग्यता आवश्यक है।
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए बड़ी राहत
हिमाचल प्रदेश में विशेष आवश्यकता वाले 5,000 से अधिक बच्चे पंजीकृत हैं, जिन्हें अब तक सामान्य स्कूलों में ही पढ़ाया जा रहा था, क्योंकि राज्य में स्पेशल एजुकेटरों की कमी थी। इन बच्चों के लिए सुंदरनगर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग (Social Justice and Empowerment Department) की ओर से एक सेंटर भी बनाया गया है, लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण यह बच्चे पूरी तरह से इसका लाभ नहीं उठा पा रहे थे।
इस भर्ती से क्या फायदा होगा?
- विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को बेहतर शिक्षा: इस भर्ती के माध्यम से इन बच्चों को विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षक मिलेंगे, जो उनकी विशेष शैक्षणिक जरूरतों को समझकर बेहतर शिक्षा प्रदान करेंगे।
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: स्पेशल एजुकेटरों की नियुक्ति से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, विशेष रूप से उन बच्चों के लिए जो अब तक सामान्य स्कूलों में पढ़ाई कर रहे थे और उन्हें विशेष देखभाल नहीं मिल पा रही थी।
- समान अवसरों का विकास: यह कदम से विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को भी समान अवसर मिल सकेंगे।
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