हिमाचल: नेहा ने कागज और नारियल के छिलकों से बना दी ईको फ्रेंडली ईंट, जानिए खासियत

नेहा ठाकुर ने कहा कि सामान्य तौर पर जो दूसरी ईंट हैं, वह सख्त होने के कारण जल्दी टूट जाती हैं, लेकिन कागज, बारीक रेत, नारियल फाइबर के कारण इसमें ताकत ज्यादा है।
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लुधियाणा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में बतौर प्रोफेसर कार्यरत नेहा ने चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की है। उन्होंने बताया कि इन ईंटों को तैयार करने का मकसद नारियल फाइबर के साथ रेत को आंशिक रूप से बदलकर को फाई ब्रिक्स बनाना और पर्यावरण के अनुसार ईंटों को विकसित कर बेकार कागज का उपयोग करना है। वह हमेशा सोचती थीं कि देश में बेस्ट की समस्या सबसे अधिक है और इसे कैसे कम किया जाए। सभी शोधकर्ताओं ने इसे कम करने के लिए कई शोध किए, मगर किसी ने ईंट नहीं बनाई।

मंडी। जलवायु परिवर्तन के कारण आजकल हर कोई पर्यावरण संरक्षण की बात कर रहा है। इसके साथ ही कई लोग पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इसी बीच हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी के सरकाघाट की नेहा ठाकुर ने बेकार मैटीरियल जैसे कागज, बारीक रेत, नारियल के छिलके और सीमेंट से ईको फ्रेंडली ईंटें तैयार की हैं। ये ईंटे पर्यावरण के लिए तो फायदेमंद हैं ही, साथ में आम लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं। क्योंकि यह बाजार में मिलने वाली ईंटों से सस्ती हैं। एक ईंट मात्र छह रुपये में उपलब्ध होगी, जबकि दूसरी एक ईंट 10 से 12 रुपये में मिलती है। 
 

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हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी के सरकाघाट की नेहा ठाकुर ने बेकार मैटीरियल से ईको फ्रेंडली ईंटें तैयार की हैं। इनको तैयार करने के लिए कागज, बारीक रेत, नारियल के छिलके और साधारण सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है। प्राकृतिक रेशों से तैयार ये ईंटें मकान की दीवारों, सुरंगों और फुटपाथ की चिनाई में लगाई जा सकेंगी। एक ईंट मात्र छह रुपये में उपलब्ध होगी। ईको फ्रेंडली एक ईंट का भार तीन किलोग्राम होगा, जबकि दूसरी ईंट का वजन चार किलो तक होता है। आमतौर पर दूसरी ईंटों में पानी को सोखने की क्षमता बहुत अधिक होती है लेकिन ईको फ्रेंडली ईंट में बहुत कम पानी सोखने की क्षमता है।

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लुधियाणा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में बतौर प्रोफेसर कार्यरत नेहा ने चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की है। उन्होंने बताया कि इन ईंटों को तैयार करने का मकसद नारियल फाइबर के साथ रेत को आंशिक रूप से बदलकर को फाई ब्रिक्स बनाना और पर्यावरण के अनुसार ईंटों को विकसित कर बेकार कागज का उपयोग करना है। वह हमेशा सोचती थीं कि देश में बेस्ट की समस्या सबसे अधिक है और इसे कैसे कम किया जाए। सभी शोधकर्ताओं ने इसे कम करने के लिए कई शोध किए, मगर किसी ने ईंट नहीं बनाई। 

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सामान्य ईंटों की तुलना में ज्यादा स्ट्रांग
रियलिटी न्यूज से बात करते हुए नेहा ठाकुर ने कहा कि सामान्य तौर पर जो दूसरी ईंट हैं, वह सख्त होने के कारण जल्दी टूट जाती हैं, लेकिन कागज, बारीक रेत, नारियल फाइबर के कारण इसमें ताकत ज्यादा है। उन्होंने कहा कि ईको फ्रेंडली ईंट और सामान्य तौर बाजार में मिलने बाद ईंट की ताकत का परीक्षण किया गया था। इसमें ईंटों को तोड़ा गया, लेकिन ईको फ्रेंडली की तुलना में दूसरी ईंट जल्द टूट गई।

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बाहरी मौसम की स्थिति के लिए अच्छी प्रतिरोधक क्षमता
नेहा ठाकुर के अनुसार कम जल अवशोषित करने वाली ईंटों में बाहरी मौसम की स्थिति के लिए अच्छी प्रतिरोधक क्षमता होती है। उन्होंने कहा कि एक नियम के अनुसार पानी सोखने की क्षमता ईंट के भार के अनुसार 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। को फाई ब्रिक्स में ईंट वजन के हिसाब से 16 प्रतिशत पानी सोखती हैं। तैयार की गई ईंटों को धूप में तीन दिन तक सुखाया जाता है। फिर वजन का परीक्षण किया जाता है। इसके बाद इस ईंट का वजन 3.16 किलोग्राम होगा। नेहा ने इस ईंट पर पेटेंट भी फाइल किया है।

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