सभी विधानसभाओं का समान विकास सरकार की प्राथमिकता : सीएम सुक्खू

सुक्खू ने कहा कि प्रदेश की सभी विधानसभाओं का समान विकास सरकार की प्राथमिकता है। हर विधानसभा क्षेत्र के लिए 175 प्लस 20 यानी 195 करोड़ रुपये की सीमा तय की गई है। इसी के तहत डीपीआर आगे भेजी जा रही हैं। 
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Photo : हिमाचल प्रदेश विधानसभा

शिमला ।   हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के दसवें दिन की कार्यवाही सोमवार को दोपहर बाद  प्रश्नकाल से शुरू हुई। पहला प्रश्न श्रीनयना देवी के भाजपा विधायक रणधीर शर्मा ने उठाया। रणधीर शर्मा ने कहा कि नाबार्ड के लिए विभिन्न योजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) भेजने के मामले भेजने में भेदभाव हो रहा है। जो पहले आए, उसकी डीपीआर को आगे भेजा जाना चाहिए। इस प्रश्न का उत्तर सदन में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने दिया।

सुक्खू ने कहा कि प्रदेश की सभी विधानसभाओं का समान विकास सरकार की प्राथमिकता है। हर विधानसभा क्षेत्र के लिए 175 प्लस 20 यानी 195 करोड़ रुपये की सीमा तय की गई है। इसी के तहत डीपीआर आगे भेजी जा रही हैं। नाबार्ड से सीमित कर्ज मिलता है, उसे बांटा जा रहा है। इस पर विधायक रणधीर शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री सदन को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्या योजना विभाग से नाबार्ड को पत्र भेजा गया है कि योजनाओं की दोबारा प्राथमिकताएं तय की जाएं। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन्हें सारी सड़कों की सूची दे दी गई है। 

सुक्खू ने दोहराया कि किसी से भेदभाव करने की बात गलत है। अगर इनकी प्राथमिकता में 195 करोड़ रुपये की सीमा के तहत बजट बचता  हो तो वे इनकी प्राथमिकता भी आगे भेजी जाएगी। जहां तक नाबार्ड के लिए पत्राचार की बात है तो यह तो साल भर चला रहता है।

 नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि नाबार्ड की एक प्रक्रिया होती है, जो डीपीआर आती है, उसे आगे बढ़ाया जाता है। जहां विपक्ष के विधायक हैं, वहां डीपीआर नहीं बनाई जा रही हैं। क्या डीपीआर बनाने के काम के लिए अधिकारियों को निर्देश देंगे कि जो विधायक प्राथमिकता दी गई हैं, उनकी डीपीआर बनाई जा रही हैं। सरकाघाट में 14 और पांवटा साहिब में 10 सड़कें बनाई जा रही हैं। किसी को भी डीपीआर बनाने को कहा गया है।

राज्य की वित्तीय स्थिति पर हंगामा के आसार
राज्य की वित्तीय स्थिति पर सदन में हंगामा हो सकता है।  दिलचस्प यह है कि सत्ता पक्ष के विधायकों ने ही नियम-130 के तहत चर्चा के लिए नोटिस दिए हैं। यानी सत्तारूढ़ दल इस विषय पर भाजपा को चर्चा के लिए चुनौती दे रहा है। पिछली सरकार की देनदारियों पर विपक्ष को घेरने की रणनीति बनाई जा रही है। वहीं, विपक्ष के विधायक भी प्रदेश में आर्थिक कुप्रबंधन के आरोप लगाकर सरकार का घेराव कर सकते हैं। नियम -130 के तहत हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर चर्चा के लिए कांग्रेस विधायकों भवानी सिंह पठानिया, चंद्रशेखर और केवल सिंह पठानिया ने प्रस्ताव दिया है।

उल्लेखनीय है कि विपक्ष के नेता की ओर से सदन की बैठक को सोमवार के बजाय शनिवार को करने का सुझाव दिया गया था, मगर मुख्यमंत्री इस बात पर अड़ गए कि सोमवार  की ही बैठक हो, क्योंकि उन्हाेंने फाइलें निपटाने में व्यस्त होने की  बात की। बाद में सदन की सहमति के बाद सोमवार ही नहीं, बल्कि मंगलवार को भी बैठक बुलाई गई। यानी सोमवार को बैठक का समापन होना था और इसे एक दिन आगे मंगलवार के लिए बढ़ाया। यही नहीं, पिछले कुछ समय से कर्मचारियों और पेंशनरों को वेतन-पेंशन समय पर न देने के मुद्दे पर  भाजपा जहां राज्य सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन के आरोप लगाकर मुखर रही, वहीं अब कांग्रेस ही इस पर सदन में चर्चा ला रही है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर इस मुद्दे  पर सदन में दोनों ही पक्षों की ओर से तीर चलेंगे।

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