सियासी विश्लेषण हिमाचलः दो नेताओं की गैर-मौजूदगी से 'आप' को दिख रहा मौका
धर्मशाला। अब तक हिमाचल प्रदेश में सत्ता की सियासत पारंपरिक रही है। हिमाचल प्रदेश की सत्ता पर एक टर्म भाजपा तो एक टर्म कांग्रेस का कब्जा रहा है। मगर इस बार इस व्यवस्थित-सी सियासत में अचानक भूचाल सा आ गया है। अब आम आदमी पार्टी (आप) भी हिमाचल में अपना दांव लगाने में जुट गई है। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में 'आप' ने पंजाब में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के गढ़ों को ध्वस्त कर दिया। 'आप' अब इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों को फतेह करने की तैयारी कर रही है। (हिमाचल के सभी समाचार एक क्लिक पर)
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पंजाब में सिरोमणि अकाली दल, भाजपा और कांग्रेस के पारंपरिक राजनीतिक संगठनों को खत्म करने वाली 'आप' के लिए हिमाचल की परिस्थितियां भी विपरीत नहीं दिख रही हैं। हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ एक मजबूत सत्ता-विरोधी लहर की झलक साफ देखने को मिल रही है। इसका एक उदाहरण अक्तूबर-2021 के उपचुनावों में दिखा, जब तीन विधानसभा और एक संसदीय सीट पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में अनुभवी मुख्यमंत्री चेहरों की अनुपस्थिति 'आप' के लिए काम कर सकती है, आप पहले से ही दो प्रदेश में शासन कर रही है।
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हिमाचल के गेम चेंजर सियासत से बाहर
हिमाचल के दो दिग्गज नेता प्रदेश की सियासत से बाहर हैं। दोनों ही पारंपरिक गेम चेंजर कांग्रेस के वीरभद्र सिंह और भाजपा के प्रेम कुमार धूमल थे। वीरभद्र सिंह का निधन हो चुका है, जबकि धूमल 2017 के विधानसभा चुनावों में अपनी हार के बाद वस्तुतः राजनीतिक निर्वासन में हैं। ऐसे में हिमाचल में 'आप' के लिए स्थिति कमोबेश स्पष्ट है। हालांकि 'आप' ने अभी तक राज्य के निकाय चुनावों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई है। हिमाचल प्रदेश में पारंपरिक राजनीतिक दल यानी कांग्रेस और भाजपा दोनों ही वर्ष 1985 के बाद से ही वैकल्पिक रूप से शासन कर रहे हैं।
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कईयों ने विकल्प बनाए पर टिक नहीं पाए
हिमाचल के गठन के बाद प्रदेश में पारंपरिक रूप से कांग्रेस का दबदबा था। वर्ष 1977 में जब जनता पार्टी सत्ता में आई, तब हिमाचल प्रदेश ने अपना पहला गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री शांता कुमार के रूप में देखा। उसके बाद से अब तक हिमाचल प्रदेश में दो ही दलों का ही प्रभुत्व रहा भी है और अभी तक है भी। कांग्रेस और भाजपा दोनों के मुट्ठी भर विद्रोही समय-समय पर उभरते रहे, लेकिन बड़े राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने में हमेशा विफल रहे। अंततः फिर वे या तो अपनी पिछली पार्टी में शामिल हो गए। या दूसरी पार्टी में अपना विलय कर दिया।
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'आप' से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई कांग्रेस
उपरोक्त परिदृश्य के बाद अब पंजाब फतह कर अपना लोहा मनवा चुकी 'आप' कुछ असंतुष्ट नेताओं के लिए एक विकल्प हो सकती है। बता दें कि 'आप' हिमाचल में पहली बार सक्रिय नहीं है। 'आप' ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। मगर अब पंजाब की जीत के बाद, वे अति सक्रिय है। सियासी माहिरों की मानें तो 'आप' की गतिविधियों से सबसे ज्यादा प्रभावित कांग्रेस ही है। कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी का हाथ छोड़कर 'आप' का दामन थाम लिया है। यही कारण है कि पांच राज्यों में चुनावी हार के बाद कांग्रेस अब हिमाचल में एक्टिव दिख रही है।
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