हिमाचलः चुनावी साल में 'शहरी परिवारों के लिए मनरेगा' कानून लाएगी भाजपा सरकार

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा सरकार एक कानून लाने के लिए काम कर रही है, जो शहरी क्षेत्रों के परिवारों को 120 दिनों के रोजगार की गारंटी देगा।
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हिमाचल प्रदेश में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसी बीच विधानसभा चुनावों से पहले, हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार एक कानून लाने के लिए काम कर रही है, जो शहरी क्षेत्रों के परिवारों को 120 दिनों के रोजगार की गारंटी देगा। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, कानून कोविड महामारी नौकरी छूटने के संकट को कम करने के लिए है। हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा है जो विधानसभा चुनावों में पार्टी को खतरे में डाल सकता है। इसी खतरे से निपटने के लिए भाजपा शहरी मनरेगा योजना लाने पर काम कर रही है।

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शहरी क्षेत्रों के लिए मनरेगा जैसा यह कानून राज्य द्वारा 2020 में घोषित मौजूदा मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना (MMSAGY) की जगह लेगा। केंद्र द्वारा 2005 में पारित, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का मजदूरी रोजगार प्रदान करता है। दिप्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल के शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और नेतृत्व में, भाजपा सरकार ने एक समान कानून बनाने का फैसला किया है। ऐसा कानून बनाने वाला हिमाचल पहला राज्य होगा।'

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिमाचल सरकार के एक सूत्र ने कहा कि "कानून के मसौदा तैयार करने के अंतिम चरण चल रहा है। कानून के अनुसार मांग पर काम नहीं मिलता है तो बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाएगा।" शहरी परिवारों को 120 दिनों के रोजगार की गारंटी देने के लिए एक अध्यादेश लाने के लिए कानूनी जांच चल रही है। इसे इसी महीने तक जारी किया जा सकता है और देरी होने पर इसे मानसून सत्र में लाया जा सकता है। यह शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी को दूर करने के लिए बुनियादी आय सुरक्षा प्रदान करेगा और हर शहरी परिवार के लिए होगा। 

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राज्य शहरी विकास मंत्रालय के निदेशक मनमोहन शर्मा ने कहा, 'हिमाचल पहला राज्य है जो एक कानून लाने की तैयारी कर रहा है जो रोजगार प्रदान करने में विफलता के मामले में सरकार को 120 दिनों के लिए नौकरी या मजदूरी भत्ता प्रदान करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी बना देगा।" उन्होंने कहा, "कुछ राज्यों ने शहरी क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने के लिए योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन वे गारंटी नहीं हैं।" शहरी बेरोजगारी को दूर करने के लिए योजनाएं झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में शुरू की गई हैं। केरल 2010-11 में इसी तरह के प्रावधान करने वाला पहला राज्य था।

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हिमाचल में पिछली सरकारों के लिए भी बेरोजगारी एक चुनौती रही है, लेकिन कोविड के बाद भाजपा सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। हिमाचल में लगभग 9 लाख लोग रोजगार एक्सचेंजों में पंजीकृत हैं। सभी आयु समूहों में, 2021-22 की जून तिमाही में हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी 7.8 प्रतिशत से बढ़कर 9.6 प्रतिशत हो गई है। भाजपा के एक नेता ने कहा, “हिमाचल एक छोटा राज्य है, जहां उद्योग सीमित हैं। पर्यटन और दवा कारखाने रोजगार पैदा करने वाले हैं, लेकिन कोविड चक्र ने हर उद्योग और नौकरियों के सृजन को प्रभावित किया है। चुनावों से पहले, बेरोजगारी बड़ा प्रभाव हो सकता है और इसे समय पर नियंत्रित करना हमारा जिम्मेदारी है।” 

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