हिमाचल : लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव के बदले समीकरणों ने उलझाया चुनावी गणित

कांग्रेस और भाजपा में लगभग हर सीट पर कांटे की टक्कर है। आज जनता ही अपने वोट से तय करेगी कि इनमें से किसे लोकसभा और विधानसभा के लिए भेजना है। दोनों चुनावों में कुल 62 प्रत्याशी मैदान में हैं। 
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शिमला ।    हिमाचल में लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव के बदले समीकरणों ने चुनावी गणित उलझा दिया है। भाजपा को चुनाव के लिए मुंबई से सिने तारिका कंगना रणौत को बुलाकर मंडी के रण में उतारना पड़ा है तो वहीं कांग्रेस को पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को नई दिल्ली से बुलाकर कांगड़ा के किले को फतह करने के लिए उतारना पड़ा। कांग्रेस और भाजपा में लगभग हर सीट पर कांटे की टक्कर है। आज जनता ही अपने वोट से तय करेगी कि इनमें से किसे लोकसभा और विधानसभा के लिए भेजना है। दोनों चुनावों में कुल 62 प्रत्याशी मैदान में हैं। 

 मंडी : जयराम ठाकुर के मैजिक और वीरभद्र फैक्टर का इम्तिहान
 मंडी में भाजपा ने सिने अभिनेत्री कंगना रणौत और कांग्रेस ने लोकनिर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह को मैदान में उतारा है। 2014-2019 के आम चुनाव में भाजपा ने यह सीट जीती थी। वर्ष 2021 में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह ने यहां उपचुनाव में बाजी मारी। इस बार मुकाबला भले ही कंगना और विक्रमादित्य के बीच है। असल इम्तिहान नेता विपक्ष जयराम ठाकुर के मैजिक और छह बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह के फैक्टर का है। भाजपा और कांग्रेस का संसदीय क्षेत्र में अपना परंपरागत वोट बैंक है। जो भी दल परंपरागत वोट बैंक को साधकर आम मतदाताओं को अपने पक्ष में करेगा वहीं संसद की दहलीज पार करेगा।
विक्रमादित्य के पिता दिवंगत वीरभद्र सिंह और माता प्रतिभा सिंह मंडी से तीन-तीन बार सांसद रह चुके हैं। वर्ष 2021 में जयराम सरकार के समय मंडी सीट पर उपचुनाव जीतने वाली कांग्रेस प्रदर्शन को फिर दोहराने की तैयारी में है। वर्ष 1952 से 2021 तक हुए 20 चुनावों में अभी तक 14 बार कांग्रेस, पांच बार भाजपा और एक बार जनता पार्टी के प्रत्याशी की जीत हुई है। वर्तमान में मंडी सीट के 17 विधानसभा क्षेत्रों में से 12 भाजपा के विधायक और कांग्रेस के चार विधायक हैं। लाहौल-स्पीति में उपचुनाव हो रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 कांगड़ा - चंबा  : एक तरफा माना जा रहा चुनाव आखिर में उलझ गया 
 कांगड़ा - चंबा संसदीय क्षेत्र में वर्ष 2009, 2014 और 2019 में चुनाव जीती भाजपा के लिए इस बार राह उतनी आसान नहीं है। करीब दो माह पहले तक भाजपा के पक्ष में जा रहा चुनाव मतदान की तारीख आने तक उलझ गया है। भाजपा-कांग्रेस ने ब्राह्मण समुदाय से प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। भाजपा ने वर्तमान सांसद किशन कपूर का टिकट काट कर कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष राजीव भारद्वाज पर दांव खेला है। कांग्रेस ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को टिकट देकर मुकाबला रोचक बना दिया है। आनंद पर बाहरी होने का आरोप लगा भाजपा ने कुछ दिन प्रचार किया लेकिन आनंद ने प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात से होने के बावजूद वाराणसी से चुनाव लड़ने का तर्क देकर आक्रामक रुख अपनाया। इस सीट पर जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाता है। ओबीसी और राजपूत समुदाय के मतदाताओं की यहां अधिक तादाद है, ऐसे में दोनों ब्राह्मण प्रत्याशियों में से जिसने भी दूसरे समुदायों को साध लिया, तो उसकी नैया पार लगेगी। कांगड़ा संसदीय सीट के तहत कांग्रेस के 11 विधायक हैं। आनंद को जिताने का जिम्मा मुख्यमंत्री ने इन पर सौंपा है। भाजपा की ताकत यहां पर संगठन है। 

शिमला  : भाजपा का चौका रोकने के लिए दीवार बन खड़ी कांग्रेस
 वर्ष 1998 तक कांग्रेस का गढ़ रही शिमला सीट पर बीते तीन चुनावों से भाजपा जीत दर्ज करती आ रही है। भाजपा ने वर्तमान सांसद सुरेश कश्यप को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने कसौली से विधायक विनोद सुल्तानपुरी पर दांव खेला है। भाजपा प्रत्याशी सिरमौर और कांग्रेस प्रत्याशी सोलन से है। दोनों जिलों में पांच-पांच सीटें आती हैं। इसके तहत सात विधानसभा क्षेत्र हैं। जिला शिमला के वोटर जिस भी दल के प्रत्याशी के पक्ष में रहेंगे, उसकी जीत ही पक्की होगी। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने संसदीय सीट के तहत आने वाले 17 विधानसभा क्षेत्रों में से 13 पर जीत हासिल की है। सुक्खू सरकार में शिमला संसदीय सीट से पांच मंत्री, तीन मुख्य संसदीय सचिव और एक विधानसभा उपाध्यक्ष हैं। चुनाव में सभी कैबिनेट दर्जे वाले नेताओं को अपने-अपने क्षेत्र से लीड दिलाकर खुद को साबित भी करना है। उधर, भाजपा को मोदी मैजिक से उम्मीद है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल सिरमौर से चुनाव लड़ते हैं और रहने वाले सोलन के हैं। दोनों जिलों में पार्टी काे लीड दिलाना बिंदल की साख से भी जुड़ा है। हाटी के मुद्दे को भाजपा ने बेहतर तरीके से उठाया है। सेब की अनदेखी को लेकर कांग्रेस मुखर रही है। ऐसे में शिमला सीट का गणित भी उलझा हुआ है। 

हमीरपुर : अनुराग ठाकुर का चक्रव्यूह भेदने की कोशिश में कांग्रेस
 सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के गृह संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में कांग्रेस भाजपा प्रत्याशी अनुराग ठाकुर का चक्रव्यूह भेदने की कोशिश में हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल से जुड़ी हाई प्रोफाइल सीट पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने ऊना सदर से पूर्व विधायक सतपाल रायजादा को उतारा है। रायजादा की जीत के लिए मुख्यमंत्री सुक्खू ने हमीरपुर, उपमुख्यमंत्री मुकेश ने ऊना, कैबिनेट मंत्री राजेश धर्माणी ने बिलासपुर में मोर्चा संभाला है। सुक्खू दो माह में कई बार हमीरपुर का दौरा कर चुके हैं। सरकार के 15 माह के कामकाज और नीतियों से अवगत कराने के साथ ही उन्होंने भाजपा पर धनबल से सरकार गिराने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया। हमीरपुर का साथ मांगते हुए जिला को मुख्यमंत्री पद मिलने तक का हवाला भी दिया है। उधर, वर्ष 2008 से अनुराग सीट पर चुनाव लड़कर चार बार जीत दर्ज कर चुके हैं। पीएम मोदी कैबिनेट में अनुराग का बड़ा ओहदा है। राष्ट्रीय राजनीति में भी अनुराग एक बड़ा चेहरा हैं। ऐसे में हमीरपुर सीट का किला फतह करने के लिए कांग्रेस को अनुराग ठाकुर का चक्रव्यूह भेदना इतना आसान भी नहीं है।

कुटलैहड़ : भुट्टो को विवेक दे रहे चुनौती
यहां पर कांग्रेस का पाला बदलकर अयोग्य घोषित विधायक देवेंद्र भुट्टो भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। भुट्टो ने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी 14 महीने पहले विस चुनाव में जयराम सरकार में मंत्री वीरेंद्र कंवर को हराया था। भुट्टो के खिलाफ कांग्रेस ने विवेक शर्मा को उतारा है। दिया है, जो 2017 के चुनाव में भाजपा के वीरेंद्र कंवर से हारे थे। भुट्टो को टिकट देने पर शुरू में कंवर असहज थे, मगर बाद में उन्हें लोकसभा चुनाव में अनुराग ठाकुर की सीट हमीरपुर का संसदीय प्रभारी बनाया गया। इस सीट पर भी कांग्रेस ने धनबल बनाम जनबल को चुनावी मुद्दा बनाया है तो भाजपा मोदी सरकार की योजनाओं को गिनाकर वोट मांग रही है और कांग्रेस पर भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगा रही है। यहां भी मुकाबला कड़ा होने वाला है। 

धर्मशाला : यहां पर तिकोना मुकाबला
इस हलके के उपचुनाव में मुकाबला तिकोना है। यहां पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा के हुए पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, कांग्रेस से पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी और निर्दलीय राकेश चौधरी के बीच घमासान है। सुधीर ब्राह्मण हैं तो देवेंद्र जग्गी राजपूत। राकेश चौधरी ओबीसी से संबंध रखने वाले चौधरी समुदाय से हैं। तीनों ही अपने-अपने समुदायों से मत की उम्मीद लगाए हैं, मगर यहां प्रभावी रहा चौथा जनजातीय गद्दी समुदाय खामोश है। इस समुदाय के वोटर निर्णायक हो सकते हैं। उपचुनाव में सुधीर के खिलाफ मुख्यमंत्री ने धनबल बनाम जनबल को मुद्दा बनाया है तो भाजपा यहां पर भी मोदी सरकार की योजनाओं के नाम पर वोट मांग रही है।
 

गगरेट : कालिया के सामने चैतन्य
कांग्रेस उम्मीदवार राकेश कालिया और भाजपा प्रत्याशी चैतन्य शर्मा के बीच सीधा मुकाबला है। कालिया यहां से 2012 में भी कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। इससे पहले 2003 और 2007 में चिंतपूर्णी से विधायक रहे। चैतन्य 2022 के विधानसभा चुनाव में गगरेट से पहली बार विधायक बने। दल-बदलकर अब भाजपा के साथ हो लिए। कालिया भी पिछले चुनाव में टिकट कटने के बाद भाजपा में चले गए थे। यह सीट मुख्यमंत्री सुक्खू के गृह संसदीय क्षेत्र और उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के गृह जिला की है, इसलिए ये दोनों नेता भी कालिया को जिताने के लिए मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस ने यहां भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है तो भाजपा सुक्खू सरकार से असहयोग और मोदी सरकार की नीतियों का सहारा लेकर दोबारा जीतना चाह रही है। 

लाहौल स्पीति : चुनौती बनीं अनुराधा 
2007 से रामलाल मारकंडा और रवि ठाकुर बारी-बारी से लाहौल स्पीति के विधायक बने हैं। पूर्व मंत्री रामलाल मारकंडा तीन बार और रवि ठाकुर दो बार यहां ये विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। दो बार कांग्रेस विधायक रहे रवि ठाकुर अब दल बदलकर भाजपा के प्रत्याशी हैं तो रामलाल मारकंडा नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों दिग्गजों के लिए यहां पर कांग्रेस प्रत्याशी जिला परिषद अध्यक्ष अनुराधा राणा ने बड़ी चुनौती पेश की है। कांग्रेस ने यहां भी रवि ठाकुर के खिलाफ दल-बदलने के लिए प्रलोभन में आने का आरोप लगा मुद्दा बनाया है। कांग्रेस लाहौल स्पीति की महिलाओं से भी वोट की उम्मीद लगाए है। तीनों को भितरघात से नुकसान हो सकता है।

सुजानपुर :  दो राणाओं में सीधी जंग
वर्ष 2012 में पहली बार निर्दलीय चुने गए राजेंद्र राणा ने 2014 और 2017 के चुनाव कांग्रेस के टिकट से लड़कर जीत की हैट्रिक लगाई। अब बदले सियासी हालात में राणा दल भाजपा से उपचुनाव लड़ रहे हैं। राणा मुख्यमंत्री सुक्खू के गृह जिला से हैं तो वह उनके निशाने पर हैं। कांग्रेस का मुद्दा यहां पर भी वही धनबल बनाम जनबल है। राजेंद्र के खिलाफ भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए कैप्टन रंजीत राणा खड़े हैं। यहां मुकाबला बहुत रोचक है। सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही एक-दूसरे के भितरघात से लाभ-हानि हो सकती है। राजेंद्र राणा का चौका रोकने के लिए कांग्रेस ने एक तगड़ी बिसात बिछा रखी है। राजेंद्र को भाजपा कार्यकर्ताओं के अलावा अपने समर्थकों से आशा है।
बड़सर : लखनपाल और सुभाष में टक्कर
बड़सर में विधानसभा उप चुनाव में इस सीट पर भाजपा के इंद्रदत्त लखनपाल और कांग्रेस के सुभाष चंद में तगड़ा मुकाबला है। कांग्रेस ने पूर्व जिला परिषद सदस्य सुभाष को नए चेहरे के रूप में चुनावी रण में उतारा है। कांग्रेस यहां पर मुख्यमंत्री सुक्खू के प्रभाव का इस्तेमाल करना चाह रही है। यहां भी कांग्रेस ने दल-बदल के लिए धनबल का आरोप लगाकर इसे ही बड़ा मुद्दा बनाया है। पूर्व में कांग्रेस के नेता रहे लखनपाल यहां 2012 से लगातार कांग्रेस के विधायक बने। अब भाजपा का टिकट लेकर उपचुनाव में चौका लगाना चाह रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए भितरघात बड़ी चुनौती है। लखनपाल के भाजपा में आने से उन्हें संगठन के अंदर चल रही कुछ नेताओं की नाराजगी से निपटना होगा। यही चुनौती कांग्रेस के लिए भी है। 

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