Himachal News : हमीरपुर जिला के 470 प्राथमिक स्कूलों में से 158 स्कूल एक अध्यापक के सहारे

हिमाचल प्रदेश के सबसे साक्षर जिला हमीरपुर में हजारों नौनिहालों का भविष्य अंधकार में लटकता नजर आ  रहा है।  कच्ची नींब पर खड़े किए जा रहे हैं महल, पहले कोरोना की मार अब गुरुजनों का इंतजार, कैसे मिलेगा बच्चों को शिक्षा का अधिकार। थाना लोहारा, घुमारवीं, कोटला और जमली में एक भी अध्यापक नहीं।
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अभिभावकों के विरोध के चलते प्रदेश सरकार (Himachal Gov't) ने प्राइमरी कक्षाओं के बच्चों की 15 नवंबर से शुरू होने वाली नियमित कक्षाओं के आदेश को बदल दिया है। निजी स्कूलों (private schools) में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के विरोध के बाद सरकार ने फैसला बदला है।
हमीरपुर । हिमाचल प्रदेश के सबसे साक्षर जिला हमीरपुर में हजारों नौनिहालों का भविष्य अंधकार में लटकता नजर आ  रहा है। जिला हमीरपुर में वर्तमान में 470 के करीब सरकारी प्राथमिक स्कूल हजारों बच्चों के भविष्य का निर्माण कर रहे हैं। लेकिन 158 प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के भविष्य की बागडोर एक ही अध्यापक के हाथों समर्पित है। ऐसे में जिस स्कूल में एक ही अध्यापक पांच  कक्षाओं को शिक्षा प्रदान कर रहा है । वो कब स्कूल की डाक तैयार करता  होगा, कब मिड डे  मील उपलब्ध करवाता होगा, कब पांच कक्षायों को पढ़ाता होगा, कब उन्हें होम वर्क देता होगा और कब उनका होम वर्क चैक करता होगा इसका आंकलन खुद ही लगाया जा सकता है।
       
बताते चलें कि जिला हमीरपुर में 470 के करीब प्राथमिक स्कूल हैं। जिनमें से 103 बिझड़ी खंड में, 97 हमीरपुर में, 62 नादौन खंड में,52 गलोड़ शिक्षा खंड में,60सुजानपुर खंड में और 96 भोरंज शिक्षा खंड में संचालित हैं। लेकिन बिझड़ी शिक्षा खंड में 103 प्राथमिक स्कूलों में से 43 स्कूल ऐसे हैं। जिनमें एक ही अध्यापक पांच कक्षायों के बच्चों के भविष्य का निर्माण कर रहा है। बिझड़ी शिक्षा खंड में घुमारवीं, कोटला और जमली  ऐसे स्कूल हैं जिनमें बच्चों की संख्या भी काफ़ी है, लेकिन स्कूल तो है पर एक भी स्थायी अध्यापक नसीब नहीं है।
जिला हमीरपुर के मुख्यालय पर स्थित शिक्षा खंड हमीरपुर में 97 प्राथमिक स्कूल हैं, जिनमें से 36 ऐसे स्कूल हैं जिनमें एक ही अध्यापक है। एक स्कूल थाना लोहारा ऐसा बदनसीब स्कूल है , जिसमें एक भी स्थाई अध्यापक नहीं है। इसी तरह अगर शिक्षा खंड सुजानपुर की बात लें तो इस खंड में 60 प्राथमिक स्कूल हैं , लेकिन 29 ऐसे प्राथमिक स्कूल हैं। जिनमें पांच कक्षाओं का जिम्मा एक अध्यापक पर है। इसी तरह शिक्षा खंड गलोड़ में 52 स्कूलों में से 19 स्कूल, भोरंज शिक्षा खंड में 96 स्कूलों में से 24 स्कूल, नादौन शिक्षा खंड में 62 स्कूलों में से 08 स्कूल एक ही अध्यापक के सहारे बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। ऐसे में 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने पर जो लाखों करोड़ों रूपये खर्च किए जा रहे हैं अपने आप में ही एक सवालिया निशान हर किसी के मन में सोचने को विवश करता है।
     क्या कहता है शिक्षा का अधिकार
शिक्षा का अधिकार जो कि 2002 में 86 बें संवेधानिक संशोधन द्वारा एक मौलिक अधिकार का रूप धारण कर चुका है और जिसके अंतर्गत 06 से 14 साल तक के हर बच्चे को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्राबधान किया गया है अध्यापकों की स्कूलों में कमी के चलते प्रासंगिक बनता जा रहा  है। जिन स्कूलों में अध्यापकों की कमी है बहाँ निशुल्क शिक्षा बच्चों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है। निशुल्क शिक्षा के नाम पर बच्चों के अभिभावकों को प्रति माह 100 से 200 रूपये पीटीए फण्ड के रूप में देने पड़ रहे हैं ताकि पीटीए पर अध्यापक रखे जा सकें। बच्चे किसी भी देश की सर्वोच्च सम्पति हैं, कर्णधार हैं लेकिन प्राथमिक शिक्षा जिस पर बच्चे का भविष्य टिका हुआ है उस पर अगर कोताही बरती जाए तो कच्ची नींब पर महल बनाने के सपने देखना मुंगेरी लाल के हसीन सपनों से बढ़ कर और कुछ नहीं है।
एक अध्यापक मिड डे मील बनवाये, बच्चों को खिलाये, डाक तैयार करे या फिर पढ़ाये
      जिन स्कूलों में वर्षों से एक ही अध्यापक कार्यरत है उन स्कूलों में अध्यापक कब प्रार्थना सभा करवाता होगा, कब पांच कक्षायों के बच्चों की हाजिरी लगाएगा, कब मिड डे मील तैयार करवाएगा, कब खिलायेगा, कब विभाग की डाक का जवाब देगा, कब पांच कक्षायों को पांच से छह विषय पढ़ायेगा, कब होम वर्क देगा और कब उस होम वर्क को चैक करेगा, खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे स्कूलों में पढ़ने बाले बच्चों का भविष्य कितना उज्जवल है।
     एक तरफ सरकार स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए अध्यापकों को कह रही है और साथ में संख्या न होने पर स्कूलों को बंद करने का फरमान जारी कर चुकी है। अभिभावक सरकार से स्कूलों में चल रहे रिक्त  अध्यापकों के पदों को भरने की बार बार फरियाद कर रहे हैं। लेकिन बच्चों को गुणात्मक शिक्षा के सपने दिखाने वाली सरकार इस समस्या के प्रति गंभीर दिखाई नहीं दे रही है।   अब प्रश्न यह पैदा होता है कि इस समस्या के समाधान के लिए कहाँ फरियाद की जाए। सरकार के प्रतिनिधि भी यही आश्वासन देते हैं कि सरकार जल्द ही इस समस्या का समाधान निकालने की योजना बना रही है  लेकिन अगर समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया , तो देश के  आने वाले कर्णधारों का भविष्य अंधकारमय बन जाएगा।
      उधर, उप शिक्षा निदेशक  हमीरपुर अशोक कुमार ने बताया कि जिले के प्राथमिक स्कूलों में अध्यापकों के पद रिक्त चल रहे हैं और अधिकतर स्कूल एक शिक्षक के सहारे चल रहे हैं। इस संदर्भ में सरकार को अवगत करवा दिया गया है । जैसे ही सरकार अध्यापकों की नियुक्तियां करेगी स्कूलों में चल रहे रिक्त पदों को भर दिया जाएगा। 

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