भेड़पालक का बेटा बना सहायक प्रोफेसर, गरीबी और संघर्ष से भरत सिंह ने चमकाया नाम

भटियात के गांव भौंट के रहने वाले डॉ. भरत सिंह का चयन धर्मशाला स्थित हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में बतौर सहायक प्रोफेसर के रूप में हुआ है।

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हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले के भटियात क्षेत्र में हर्ष और उल्लास का माहौल है। भटियात के गांव भौंट के रहने वाले डॉ. भरत सिंह का चयन धर्मशाला स्थित हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में बतौर सहायक प्रोफेसर के रूप में हुआ है।    विकट परिस्थितियों में भी अपनी यह उपलब्धि हासिल करके भरत सिंह ने न केवल क्षेत्र का नाम रोशन किया है, बल्कि भावी पीढ़ी के लिए भी आदर्श बन गए हैं। भरत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल भौंट में प्राप्त की। पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बारहवीं की पढ़ाई राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सिहुंता से उत्तीर्ण की।

धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले के भटियात क्षेत्र में हर्ष और उल्लास का माहौल है। भटियात के गांव भौंट के रहने वाले डॉ. भरत सिंह का चयन धर्मशाला स्थित हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में बतौर सहायक प्रोफेसर (Assistant Professor Bharat Singh ) के रूप में हुआ है।

विकट परिस्थितियों में भी अपनी यह उपलब्धि हासिल करके भरत सिंह ने न केवल क्षेत्र का नाम रोशन किया है, बल्कि भावी पीढ़ी के लिए भी आदर्श बन गए हैं। भरत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल भौंट में प्राप्त की। पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बारहवीं की पढ़ाई राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सिहुंता से उत्तीर्ण की।

इसके बाद स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला से पूरी करने के बाद भरत ने अपनी पीएचडी की उपाधि गद्दी समुदाय के लोक साहित्य आधारित विषय पर हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय से 2023 में हासिल की।

पढ़ाई के दौरान हुआ था माता का निधन

भरत सिंह के लिए जीवन की राह कभी भी आसान नहीं रही। उनके पिता कुंजलाल एक भेड़पालक हैं और उनकी माता सुनीता देवी का देहांत पहले ही हो चुका था। दुर्गम पहाड़ी इलाके में जन्मे भरत को शुरुआत से ही पढ़ाई करने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

समय पर खाना भी नहीं होता शा नसीब

पढ़ने के लिए भरत अपने गांव से 10 से 12 किलोमीटर का रास्ता तय करके स्कूल जाया करते थे। कई बार तो उन्हें समय से खाना भी नसीब नहीं होता था। लेकिन किसी भी प्रकार के अभाव पर ध्यान ना देते हुए भरत ने अपनी पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित रखा और यह मुकाम हासिल किया।

घर के काम के साथ जारी रखी पढ़ाई 

गरीबी के कारण, भरत को अक्सर अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। वह भेड़ों को चराने, खेतों में काम करने और लकड़ी काटने जैसे काम करते थे। इन सबके बावजूद, उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और अपनी प्रतिभा को कभी कम नहीं होने दिया।

भरत सिंह लिख चुके हैं दो पुस्तकें

डॉ. भरत ने अब तक 23 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। साथ ही गद्दी जनजातीय के लोकगीत और नुआला पर आधारित उनकी 2 किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं । गत वर्ष इनकी किताबों का विमोचन हिमाचल प्रदेश के माननीय राज्यपाल के कर कमलों द्वारा हुआ था। वर्तमान में डॉ. भरत कांगड़ा स्थित डीएवी महाविद्यालय में बतौर सहायक आचार्य अपनी सेवाएं दे रहे थे।

डॉ. भरत सिंह की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि मेहनत और लगन से कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है। वह उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो गरीबी या अन्य बाधाओं के कारण अपनी शिक्षा और करियर को आगे बढ़ाने में असमर्थ महसूस करते हैं।

"मेरा मानना ​​है कि शिक्षा ही गरीबी और पिछड़ेपन से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका है। मैं सभी युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करें और अपने सपनों को साकार करें।

-डॉ. भरत सिंह

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