Himachal Election : निर्दलीय बनेंगे किंगमेकर ? दोहराया जाएगा 24 साल पुराना इतिहास !

साल 1998 चुनाव में स्थिति बेहद दिलचस्प हो गई थी। कांग्रेस और भाजपा दोनों की सीटें कम आई थीं। तब भाजपा ने निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाई और पांच साल तक चलाई।

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Himachal Assembly Election 2022

शिमला। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव (Himachal Pradesh Assembly Election 2022) के लिए मतदान हो चुका है। आठ दिसंबर को अब नतीजे आने का इंतजार है। ऐसे में नतीजों से पहले कई तरह की रोचक चर्चाएं हो रहीं हैं। ऐसी भी चर्चाएं हो रही हैं कि इस बार निर्दलीयों की मदद से सरकार बनेगी! दरअसल, इसके पीछे एक तर्क भी है। अब तर्क क्या है वह आगे पढ़िए...

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार 412 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। इनमें 99 प्रत्याशी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव अखाड़े में उतरे हैं। निर्दलीयों पर दलबदल कानून भी लागू नहीं होता है। ऐसे में जीत के बाद निर्दलीय प्रत्याशी किसी भी पार्टी का दामन थाम सकते हैं अथवा उसे अपना समर्थन दे सकते हैं। अगर कोई पार्टी बहुमत तक नहीं पहुंचती है तो निर्दलीय सरकार बनाने में बड़ा रोल निभा सकते हैं। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल 1998 में विधानसभा चुनाव में स्थिति बेहद रोचक हो गई थी। तब भाजपा के लिए निर्दलीय उम्मीदवार रमेश ध्वाला हीरो बनकर उभर थे। शांता कुमार के कट्टर समर्थक रमेश ध्वाला को भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो ध्वाला निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल रहे थे। इस चुनाव में न भाजपा को बहुमत मिला और न कांग्रेस को। ऐसे में निर्दलीय विधायक चुने हए रमेश ध्वाला किंगमेकर बने थे।

ध्वाला के समर्थन का दावा कर वीरभद्र बन गए सीएम

चुनाव परिणाम के बाद ध्वाला शिमला पहुंचे। कहा जाता है कि उन्हें कांग्रेस नेताओं ने कब्जे में ले लिया और सीधे हॉलीलाज ले गए। वीरभद्र सिंह समेत तमाम नेताओं ने उन्हें कांग्रेस को समर्थन देने का आग्रह किया और तमाम तरह के प्रलोभन भी दिए गए। डराया धमकाया भी गया। ध्वाला ये सब खुद स्वीकार भी कर चुके हैं। ध्वाला के समर्थन का दावा कर वीरभद्र सिंह ने सरकार का बनाने का दावा ठोक दिया व उन्हें राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी दिला दी।


बहुमत साबित करने से पहले वीरभद्र ने दे दिया इस्तीफा

हालांकि वीरभद्र ने सीएम पद की शपथ ले ली, लेकिन, ध्वाला समर्थन देने के लिए तैयार नहीं हुए। तब उनकी बात शांता कुमार से कराई गई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उस समय ध्वाला ने कहा था कि उन्हें मंत्री का पद नहीं चाहिए, मगर वह प्रदेश में भाजपा की सरकार चाहते हैं। वह वीरभद्र सिंह को समर्थन नहीं देंगे। दूसरे दिन यह सूर्खियों में था और वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री के पद से सदन में बहुमत पारित होने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा था।


सुखराम की पार्टी ने सरकार बनाने में निभाया अहम रोल

1998 के ही विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह के कांग्रेस में सबसे विरोधी रहे पंडित सुखराम शर्मा की पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस के चार विधायक जीत कर आए थे। तमाम कोशिशें की गईं लेकिन, यह चारों ही कांग्रेस नेताओं के हाथ नहीं लग पाए। बाद में भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल व सुखराम ने मिलकर गठबंधन सरकार बनाई जो पूरे पांच साल चली। उस सरकार में निर्दलीय विधायक रमेश ध्वाला को मंत्री बनाया गया था।

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