अलविदा: हिमाचल की सियासत के चाणक्य पंडित सुखराम का विवादों से रहा नाता

पंडित सुखराम का राजनैतिक करियर सुर्खियों और विवादों में रहा। भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कांग्रेस से बाहर हुए तो हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर भाजपा के साथ मिलकर सत्ता संभाली।
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पंडित सुखराम को हिमाचल की सियासत का चाणक्य कहा जाता था। उनकी गिनती न केवल प्रदेश बल्कि देश के दिग्गज नेताओं में होती थी। उनके चाहने वाले उन्हें भारत में दूरसंचार क्रांति का मसीहा भी कहते हैं। उनका राजनैतिक करियर सुर्खियों और विवादों में रहा। भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कांग्रेस से बाहर हुए तो हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर भाजपा के साथ मिलकर सत्ता संभाली। फिर कांग्रेस में शामिल हुए और फिर सरकार में शामिल हुए। आइए जानते हैं पंडित सुखराम के राजनीतिक जीवन के अनछूए पहलुओं को...   

पूर्व केंद्रीय दूर संचार मंत्री पंडित सुखराम का आज यानी मंगलवार रात को निधन हो गया। सात मई शनिवार को उन्हें मंडी से एयरलिफ्ट कर दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था। जहां उनकी हालत नाजुक बताई जा रही है। 9 मई को सोशल मीडिया पर उनकी मौत की फेक खबर तैरती रही, जिसका उनके परिवार के लोगों में खंडन भी किया, लेकिन इसी बीच 11 मई तड़के पंडित सुखराम के पोते से स्वयं सोशल मीडिया पर उनके निधन की सूचना सार्वजनिक की और 'अलविदा दादा' लिखा।


पंडित सुखराम को हिमाचल की सियासत का चाणक्य कहा जाता था। उनकी गिनती न केवल प्रदेश बल्कि देश के दिग्गज नेताओं में होती थी। उनके चाहने वाले उन्हें भारत में दूरसंचार क्रांति का मसीहा भी कहते हैं। उनका राजनैतिक करियर सुर्खियों और विवादों में रहा। भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कांग्रेस से बाहर हुए तो हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर भाजपा के साथ मिलकर सत्ता संभाली। फिर कांग्रेस में शामिल हुए और फिर सरकार में शामिल हुए। आइए जानते हैं पंडित सुखराम के राजनीतिक जीवन के अनछूए पहलुओं को...   

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जनता पार्टी लहर के बीच बचा लिया मंडी का किला 

27 जुलाई 1927 को मंडी जिला की तुंगल घाटी के कोटली में सुखराम का जन्म हुआ। वर्ष 1962 में नगर परिषद मंडी के सचिव पद को छोड़ निर्दलीय मैदान में उतरे और दिग्गज कांग्रेसी एवं स्वतंत्रता सेनानी कृष्णानंद को हराकर राजनीतिक सफर शुरु किया। सुखराम साल 1983 तक प्रदेश कांग्रेस सरकार में विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेवारी संभालते रहे। उन्होंने वर्ष 1977 में जनता पार्टी की लहर के बीच भी अपने मंडी के किले को बचाया। केंद्र की राजीव गांधी सरकार में रक्षा राज्य मंत्री और स्वतंत्र प्रभार के केंद्रीय खाद्व आपूर्ति मंत्री रहे। केंद्र की नरसिंहा राव सरकार में दूरसंचार मंत्री बने।

 


हिमाचल विकास कांग्रेस ने बनाई भाजपा की सरकार 

केंद्रीय मंत्री रहते भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने पर वर्ष 1996 में उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। सुखराम ने साल 1997 में हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) का गठन किया और 1998 के विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचे। भाजपा से गठबंधन कर प्रेम कुमार धूमल की सरकार में साझीदार बने। सरकार में अपने चार विधायकों को मंत्री बनवाया और खुद रोजागार सृजन समिति के अध्यक्ष बने। इतना ही नहीं, वह अपने बेटे अनिल को भी राज्यसभा भेजने में कामयाब रहे। 2003 में सुखराम हिविंका के बैनर तले मंडी सदर के किले को बचाने में कामयाब रहे।

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कांग्रेस संग हो ली हिविकां, फिर कांग्रेस से भाजपा  

वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान सुखराम ने हिविकां का कांग्रेस में विलय कर दिया। वर्ष 2004 में उन्हें दोबारा कांग्रेस में एंट्री मिली। 2007 के विधानसभा चुनाव में सुखराम ने सकिय राजनीति से खुद को किनारे करते हुए अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी। कांग्रेस विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहने वाले अनिल शर्मा ने पिछला चुनाव भाजपा से जीता और सरकार में मंत्री बने, लेकिन बेटे आश्रय के कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद भाजपा में उनके रिश्ते खट्टे होते गए और मंत्री पद जाता रहा। 


3 साल की कैद, सुप्रीम कोर्ट की मुहर

दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 2002 में सुखराम को उपकरण सप्लाई में हैदराबाद स्थित एडवांस रेडियो कंपनी के प्रबंध निदेशक रामा राव को अपने पद का दुरूपयोग कर फायदा पहुंचाने और सरकार को 1.66 करोड़ का नुक्सान करवाने पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोषी पाया। दिल्ली की अदालत ने पंडित सुखराम को तीन साल की सजा सुनाई थी। 19 दिसबर 2010 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा था। 5 जनवरी 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी।


गुनाहगार और सजा के बने हकदार

केंद्र की नरसिंहा राव सरकार में दूर संचार मंत्री रहे सुखराम को अपने पद का दुरूपयोग कर एक केवल सप्लाई कंपनी को लाभ पहुंचाने के सालों पुराने मामले में दिल्ली की एक अदालत ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम व आपराधिक षडय़ंत्र रचने का दोषी करार देते हुए पांच साल कैद की सजा सुनाई। सुखराम को आय से अधिक संपत्ति के मामले में सजा हुई। आय से अधिक संपत्ति के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने बारह साल पुराने मामले में 20 फरवरी, 2009 को सुखराम को दोषी कऱार दिया था। उन्हें तीन वर्ष की क़ैद के अलावा दो लाख रूपए ज़ुर्माना भी लगाया गया था। 


1996 में पड़े थे सीबीआई के छापे

सीबीआई ने अगस्त, 1996 को सुखराम के दिल्ली, गाजियाबाद और हिमाचल प्रदेश स्थित घरों पर छापा मारा था। सीबीआई ने तब उनकी संपत्ति का करोड़ों रुपये में आकलन कर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था। वर्ष 1997 में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत उनके खिलाफ़ अदालत में चार्जशीट दायर की गई थी।

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