गद्दी भाषा में दुनिया देखेगी सुन्नी-भूंकू की अमर प्रेम कहानी, आ गया ट्रेलर

अब गद्दी जनजाति की विशिष्ट भाषा, संस्कृति रहन-सहन, रीति-रिवाजों और पहनावे को दुनिया देखेगी। और यह सब हो पाएगा भरमौर के घरेड़ गांव से संबंध रखने वाले मनोज चौहान की मेहनत से।
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अब गद्दी जनजाति की विशिष्ट भाषा, संस्कृति रहन-सहन, रीति-रिवाजों और पहनावे को दुनिया देखेगी। और यह सब हो पाएगा भरमौर के घरेड़ गांव से संबंध रखने वाले मनोज चौहान की मेहनत से।

धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश की जनजातियों में से एक गद्दी जनजाति जनसंख्या का बड़ा हिस्सा है। गद्दी जनजाति की विशिष्ट भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, रीति-रिवाज और पहनावे के कारण अपनी अलग-पहचान है। गद्दी समुदाय ने अपनी पुरानी संस्कृति और विरासत को आज भी संजो कर रखा है। हिमाचल से बाहर शायद ही कोई गद्दी समुदाय और गद्देरण के बारे में जानता है। मगर अब गद्दी जनजाति की विशिष्ट भाषा, संस्कृति रहन-सहन, रीति-रिवाजों और पहनावे को दुनिया देखेगी। और यह सब हो पाएगा भरमौर के घरेड़ गांव से संबंध रखने वाले मनोज चौहान की मेहनत से।


भरमौर के मनोज चौहान का बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपनी धाक जमा चुके हैं। गद्दी समुदाय से संबंध रखने वाले मनोज चौहान ने बातचीत में बताया कि उनके मन में गद्दी भाषा, संस्कृति रहन-सहन, रीति-रिवाजों के बारे में दुनिया को बताने की चाह थी। 12वीं कक्षा में पढ़ते वक्त एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। इसके बाद इसी क्षेत्र को अपनी पेश बनाने की ठान ली। मुंबई में रहकर कई फिल्मों में काम किया। मगर मेरे मन में हमेशा अपने समुदाय के बारे में और लोगों को बताने की लालसा थी। और इस लालसा को फिल्म के माध्यम से दुनिया के सामने रखना चाहता था। इसी कड़ी में पहली गद्दी भाषा में पहली फीचर फिल्म गद्देरण बनाई थी।


इसके बाद अब भरमौर और लाहौल क्षेत्र की प्रसिद्ध अमर प्रेम कहानी सुन्नी-भुंकू का भी फिल्मांकन किया। उन्होंने बताया कि इस फिल्म की करीब अढ़ाई साल तक शूटिंग चली और अब फिल्म की एडीटिंग चल रही है। उन्होंने बताया कि फिल्म को फरवरी तक रीलीज कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि गद्दी समुदाया आज भी अपने सदियों से चले आ रहे रीति-रिवाजों का पालन कर रहा है। हालांकि आज की युवा पीढ़ी अपने समुदाय के संघर्ष को नहीं जानती है। इस फिल्म के माध्यम में जहां गद्दी भाषा भाषा में संवाद हैं, वहीं दर्शकों को गद्दी संस्कृति, रहन-सहन, रीति-रिवाजों और पहनावे के बारे में भी जानने को मिलेगा। 


क्या दिखेगा फिल्म में
सुन्नी-भुंकू फिल्म में दर्शक सुन्नी-भुंकू के प्रेम की कहानी तो देखेंगे ही साथ में गद्दी जनजाति की विशिष्ट भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, रीति-रिवाज और पहनावे के बारे में भी जान सकेंगे। 

गद्दियों की जीवन शैली
गद्दी जनजाति भारत की सांस्कृतिक रूप से सबसे समृद्ध जनजातियों में से एक है। पशुपालन करने वाले गद्दी समुदाय का ऊंचे पर्वतीय भागों में रहना, फिर भेड़-बकरियों के साथ कांगड़ा और पंजाब के हिस्सों का रुख करना। 
 


डंडारस और डंगी
खुशियाों के पलों गद्दी समुदाय में डंडारस और डंगी नृत्य की झलक भी इसमें देखने को मिलेगी। इसमें पुरूष चोलू-डोरा व महिलाएं लुआंचडी-डोरा के साथ आभूषण पहनकर एक घेरे में नाचते हुए दिखेंगी। 

 अब गद्दी जनजाति की विशिष्ट भाषा, संस्कृति रहन-सहन, रीति-रिवाजों और पहनावे को दुनिया देखेगी। और यह सब हो पाएगा भरमौर के घरेड़ गांव से संबंध रखने वाले मनोज चौहान की मेहनत से।


यह होगा फिल्म को मुख्य हिस्सा
मनोज चौहान द्वारा निर्देशित फिल्म सुन्नी-भुंकू में दिखाया जाएगा कि भुंकू अपनी भेड़-बकरियों को चराने लाहौल जाता है। वहां उसकी सुन्नी नामक युवती से मुलाकात होती है। और मुलाकात ही प्यार में बदल जाती है। भुंकू प्यार में सब कुछ भूल जाता है। छ: माह बीतने के बाद भुंकू सुन्नी से फिर जल्द ही लौटकर आने का वादा करके घर आ जाता है। मगर वह लौट कर सुन्नी के पास नहीं जाता है। और दिन दरिया में कूद कर जान दे देती है और उसके बाद भुंकू भी मौत को गले लगा लेता है। खैर अब इंतजार करिए मनोज चौहान की फिल्म का गद्दी भाषा में।

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