Himachal CPS Case : हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले पर एकमत नहीं विशेषज्ञ, जानें क्या है मामला

हिमाचल प्रदेश में मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले की अलग-अलग तरीके से व्याख्या की जा रही है। विशेषज्ञ भी इसको लेकर एकमत नहीं है। 
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 2006 के मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) कानून को असांविधानिक घोषित कर दिया है, जिससे छह विधायकों की सदस्यता पर संकट गहराने की स्थिति बन गई है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद विशेषज्ञों में इस मुद्दे पर मतभेद है, और विधायकों की सदस्यता को लेकर भिन्न-भिन्न व्याख्याएं सामने आ रही हैं।  हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव पदों पर हुई नियुक्तियों को असंवैधानिक और अवैध माना गया है।

शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 2006 के मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) कानून को असांविधानिक घोषित कर दिया है, जिससे छह विधायकों की सदस्यता पर संकट गहराने की स्थिति बन गई है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद विशेषज्ञों में इस मुद्दे पर मतभेद है, और विधायकों की सदस्यता को लेकर भिन्न-भिन्न व्याख्याएं सामने आ रही हैं।

हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव पदों पर हुई नियुक्तियों को असंवैधानिक और अवैध माना गया है। अदालत ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदस्य अयोग्यता अधिनियम 1971 की धारा 3(डी) को भी रद्द कर दिया, जिसके अंतर्गत सीपीएस पद को संरक्षित किया गया था। इस मामले में याचिका दायर करने वाले पक्ष ने दावा किया था कि राज्य सरकार को सीपीएस कानून बनाने का अधिकार नहीं है।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 164(1) ए के तहत किसी राज्य की मंत्रिपरिषद की संख्या विधानसभा की कुल संख्या के 15 फीसदी से अधिक और 12 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए। याचिका में इस बात पर बल दिया गया था कि सीपीएस पद से सरकारी खर्च और संसाधनों का अनुचित इस्तेमाल हो रहा था।

सरकार की दलीलें और अदालत का निर्णय

सरकार ने अपनी दलीलों में कहा कि सीपीएस का पद भारत में 1950 से स्थापित एक प्रथा के आधार पर हिमाचल में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य राज्य के प्रशासनिक कार्यों में सहयोग प्रदान करना था। इसके तहत मुख्यमंत्री के कार्यभार को कम करने के लिए सीपीएस नियुक्त किए गए थे। सरकार का कहना था कि गुड गवर्नेंस और जनहित में इन पदों का महत्व था।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के बिम्लांक्षु राय बनाम असम सरकार के फैसले को आधार मानते हुए हिमाचल प्रदेश के सीपीएस कानून 2006 को भी निरस्त कर दिया। 2004 में असम में सीपीएस पद पर नियुक्ति के लिए कानून बनाया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया था, हालांकि तब विधायकों की सदस्यता समाप्त नहीं की गई थी।

विशेषज्ञों की राय में मतभेद

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद विशेषज्ञों में मतभेद उभर कर सामने आए हैं।

  • कानून अवैध घोषित होने के बाद भी रही है सदस्यता : अनूप
    महाधिवक्ता अनूप रतन ने कहा है कि सरकार से विचार-विमर्श करने के बाद जल्द इस मामले में फैसला लिया जाएगा। कहा कि हाईकोर्ट की पूरी जजमेंट बिम्लांक्षु राय बनाम असम सरकार (2018) पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने जब असम कानून को अवैध घोषित किया, उसके बाद भी शीर्ष अदालत ने विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी थी।

  • कोर्ट ने पहले दिन से अवैध मानी हैं नियुक्तियां : रजनीश
    पीपल फॉर रिस्पोंसिबल के वरिष्ठ अधिवक्ता रजनीश मनीकटाला ने कहा कि मुख्य संसदीय सचिव कानून पर फैसला आने के बाद छह विधायकों की सदस्यता जा सकती है। अदालत ने अपने फैसले में सीपीएस की नियुक्तियों को पहले दिन से ही अवैध और असांविधानिक माना है।

  • विधायकों की सदस्यता पर मंडरा रहा खतरा : अंकित
    याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता अंकित धीमान ने बताया कि हाईकोर्ट के फैसले आने के बाद विधायकों की सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है और इनकी सदस्यता भी जा सकती है।
     

  • नहीं जाएगी विधायकों की सदस्यता : राजेंद्र
    विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र विभाग से सेवानिवृत्त प्रोफेसर राजेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि सीपीएस कानून के निरस्त होने के बाद छह विधायकों की सदस्यता नहीं जाएगी। संविधान के अनुच्छेद 191 के तहत विधायकों की अयोग्यता को परिभाषित किया है कि कब-कब विधायकों की सदस्यता को अयोग्य करार दिया जाएगा। सरकार अगर लाभ के पद पर कानून बनाती है तो वह अयोग्य घोषित नहीं होंगे।

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