कारगिल के हीरो : ये दिल मांगे मोर… कैप्टन बत्तरा ने सबसे मुश्किल चोटी ऐसे की फतह

शहीद विक्रम बत्तरा का जन्म 9 सितंबर 1974 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश हुआ था। युद्ध के मैदान में उनकी बहादुरी और निडर रवैये के लिए उन्हें “शेर शाह” कहा जाता था।

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कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई 1999 तक जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले और एलओसी के साथ अन्य जगहों पर लड़ा गया था। भारत में इस संघर्ष को ‘ऑपरेशन विजय’ भी कहा जाता है। इस चर्चित संघर्ष के कुछ चर्चित चहरे भी हैं जिनकी कहानी हमें मालूम होनी चाहिए। एक ऐसा ही नाम  कैप्टन विक्रम बत्रा का है। वह 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। कैप्टन विक्रम बत्रा जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में एक कप्तान के रूप में कार्यरत थे।

न्यूज डेस्क। कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई 1999 तक जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले और एलओसी के साथ अन्य जगहों पर लड़ा गया था। भारत में इस संघर्ष को ‘ऑपरेशन विजय’ भी कहा जाता है। इस चर्चित संघर्ष के कुछ चर्चित चहरे भी हैं जिनकी कहानी हमें मालूम होनी चाहिए। एक ऐसा ही नाम  कैप्टन विक्रम बत्रा का है। वह 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। कैप्टन विक्रम बत्रा जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में एक कप्तान के रूप में कार्यरत थे।


7 जुलाई 1999 को एक अहम चोटी 5140 पर कब्ज़ा करने के ऑपरेशन के दौरान विक्रम बत्रा और उनकी टीम को दुश्मन की भारी गोलाबारी का सामना करना पड़ा। गंभीर खतरे का सामना करने के बावजूद उन्होंने सामने से अपने सैनिकों का नेतृत्व किया और रणनीतिक चोटी पर सफलतापूर्वक कब्जा करने में कामयाब रहे। विक्रम बत्तरा के लिए कहा जाता है कि वह अपने साथियों के लिए हमेशा आगे रहते थे।

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एक ऐसा ही किस्सा एक ऑपरेशन के दौरान हुआ, जब विक्रम बत्तरा को एहसास हुआ कि उनके एक साथी सैनिक राइफलमैन संजय कुमार गंभीर रूप से घायल हो गए थे और एक खुली पहाड़ी पर फंसे हुए थे। बिना किसी हिचकिचाहट के बत्रा ने वापस जाकर उन्हें बचाने का फैसला किया। खतरनाक परिस्थितियों और दुश्मन की गोलीबारी के बावजूद वह राइफलमैन संजय कुमार तक पहुंचे और उन्हें सफलतापूर्वक सुरक्षित निकाल लिया।

 
शहीद विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश हुआ था। युद्ध के मैदान में उनकी बहादुरी और निडर रवैये के लिए उन्हें “शेर शाह” कहा जाता था। बत्रा ने प्वाइंट 5140 पर कब्ज़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो कारगिल क्षेत्र की सबसे कठिन और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों में से एक थी। कहा जाता है कि अपने मिशन के दौरान हमेशा “ये दिल मांगे मोर!” का नारा लगते थे। उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। वह कारगिल युद्ध में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले पहले सैन्यकर्मी थे।

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