चिंतपूर्णी कॉलेज में बन रही राजनीति की प्रयोगशाला, सिसक रही शिक्षाः कैप्टन संजय

कैप्टन संजय ने कहा कि सिस्टम के कुछ कर्ता-धर्ता शैक्षणिक संस्थान को राजनीति की प्रयोगशाला बनाने में जुटे हैं। इस कारण बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कैसे की जा सकती है। 
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Chintpurni College चिंतपूर्णी कॉलेज। कैप्टन संजय पराशर । Capt Sanjay Prashar

चिंतपूर्णी। कैप्टन संजय पराशर ने कहा है कि दो विधानसभा क्षेत्रों जसवां-परागपुर और चिंतपूर्णी की सीमा पर स्थित राजकीय महाविद्यालय, चिंतपूर्णी में बदहाली के आंगन में शिक्षा व्यवस्था सिसकती हुई नजर आ रही है। सरकारीकरण होने के बाद सिर्फ संस्थान का नाम बदला है, जबकि महाविद्यालय परिसर सुविधाओं का पूरी तरह से अकाल है। इसके बावजूद भी सिस्टम के कुछ कर्ता-धर्ता शैक्षणिक संस्थान को राजनीति की प्रयोगशाला बनाने में जुटे हैं। इस कारण बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कैसे की जा सकती है, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। 


परागपुर में बुधवार को जनसंवाद कार्यक्रम में संजय ने कहा कि चिंतपूर्णी कॉलेज में कुल 193 विद्यार्थियों में 129 छात्राएं पढ़ाई कर रही हैं और इसमें से अधिकतर छात्र-छात्राएं जसवां-परागपुर क्षेत्र के गरीब परिवारों से संबंध रखते हैं। हालांकि कॉलेज की नोटिफिकेशन जिला ऊना के लिए हुई थी, लेकिन वर्तमान में कॉलेज परिसर कांगड़ा जिला के भू-भाग में चल रहा है। विडम्बना यह है कि कॉलेज के पास न पर्याप्त जमीन है और न ही पूरा स्टाफ है। ऐसे में यहां पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लगता नजर आ रहा है। कुल नौ प्रवक्ताओं के पदों में से छह खाली चल रहे हैं और प्राचार्य का पद भी रिक्त है।


संजय ने कहा कि ऐसे में समझा जा सकता है कि यह कॉलेज कागजों में ही सरकारी चल रहा है। पराशर ने कहा कि कोरोनाकाल में जब उन्होंने इस महाविद्यालय का जर्जर भवन देखा था तो इसके जीर्णोद्धार पर 27 लाख रूपए से ज्यादा की धनराशि खर्च की और पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया। इसके अलावा पिछले वर्ष कॉलेज के सभी विद्यार्थियों की एकमुश्त वार्षिक फीस भी भरी। उन्होंने कहा कि उनका मानना था कि इस पहल के बाद कॉलेज की दिशा व दशा में सुधार किया जाएगा, लेकिन दुखद पहलू यह रहा कि कुछ लोगों के हठयोग के कारण उन्हें इस संस्थान से दूरी बनाने पर मजबूर होना पड़ा।


कॉलेज के नाम पर अब भी पांच कनाल भूमि है, जबकि यूजीसी नियमों के तहत महाविद्यालय के नाम पर 25 कनाल से ज्यादा जगह चाहिए। खेल मैदान और परिसर के आधारभूत ढांचे को लेकर अब तक सिर्फ बातें ही हुई हैं। 26 अप्रैल, 2017 को कॉलेज की सरकारीकरण की अधिसूचना जारी होने के बाद पांच वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन कॉलेज के जमीन अधिग्रहण पर क्या प्रक्रिया चली हुई है, यह अभी तक सार्वजनिक नहीं हो पाया है। संजय पराशर ने इस मुद्दे पर मंदिर न्यास, चिंतपूर्णी को भी घेरा है। कहा कि मंदिर न्यास के पास एक सौ करोड़ की एफडी है।


अच्छा होता कि न्यास इस कॉलेज के भवन और जमीन अधिग्रहण के लिए आर्थिक सहायता करता और मां चिंतपूर्णी की कृपा से क्षेत्र की बेटियों का भविष्य भी संवर जाता। बावजूद आंकड़ों की बाजीगरी में माहिर मंदिर ट्रस्ट के प्रबंधकों ने भी इस शिक्षा के मंदिर के उत्थान के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। संजय ने कहा कि शिक्षा क्षेत्र की इन खामियों पर हर मंच से चर्चा होनी चाहिए ताकि शिक्षण संस्थानों के मानकों व स्टाफ की कमी को पूरा किया जा सके।

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