Chauarasi Temple: भरमौर के इस मंदिर में लगती है यमराज की कचहरी, आप स्वर्ग जाएंगे या नरक यहीं होता है फैसला
![जिला चंबा के उपमंडल भरमौर ((temple of Bharmour)) में स्थित चौरासी मंदिर परिसर है। चौरासी मंदिर भरमौर शहर के केंद्र में स्थित है। Sham Chauarasi Temple in Bharmour लगभग 1400 साल पहले बनाए गए मंदिरों के कारण यहां का बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। चौरासी मंदिर की परिधि में बनाए गए 84 मंदिरों के कारण ही इसका नामकरण हुआ है। इसी परिसर में दुनिया का एक मात्र मौत के देवता का मंदिर है, ऐसा माना जाता है। यह मंदिर ‘धर्मराज’ यानी यमराज का है।](https://realitynews.in/static/c1e/client/90677/uploaded/d85f6289bb48bc039ec577aa0d026983.jpg?width=960&height=640&resizemode=4)
भरमौर। देवभूमि हिमाचल। यह दो शब्द ही काफी हैं हिमाचल को समझने के लिए। देवभूमि यानी देवी-देवताओं के वास करने वाला स्थान। हिमाचल का कोई ऐसा कोना नहीं हैं, जहां देवी-देवताओं के मंदिर नहीं मिलेंगे। हिमाचल के जिस भी कोने में आप जाएं और कोई न मंदिर जरूर मिलेगा। और इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां भी सुनने को मिलेंगी। कुछ मंदिर की ऐसी कहानियां हैं कि उन्हें सुनकर आश्चर्य भी होता है और हैरानी भी।
ऐसे ही एक मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जहां आप जीवन में जीते जी जाएं या नहीं मगर मरने के बाद यहां आना ही पड़ेगा, ऐसी मान्यता है। चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक। इस मंदिर में व्यक्ति की मौत के बाद फैसला लिया जाता है कि उसे स्वर्ग मिलेगा अथवा नर्क। जिला चंबा के उपमंडल भरमौर ((temple of Bharmour)) में स्थित चौरासी मंदिर परिसर है। चौरासी मंदिर भरमौर शहर के केंद्र में स्थित है।
लगभग 1400 साल पहले बनाए गए मंदिरों के कारण यहां का बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। चौरासी मंदिर की परिधि में बनाए गए 84 मंदिरों के कारण ही इसका नामकरण हुआ है। इसी परिसर में दुनिया का एक मात्र मौत के देवता का मंदिर है, ऐसा माना जाता है। यह मंदिर ‘धर्मराज’ यानी यमराज का है। माना जाता है इंसान अगर जिंदा रहते हुए इस मंदिर में नहीं आया तो उसे मौत के बाद उसकी आत्मा को यहां आना ही पड़ता है।
यहां आने के बाद उसके पाप और पुण्य के आधार पर फैसला करके व्यक्ति को स्वर्ग अथवा नर्क में भेजा जाता है। इस मंदिर में आने वाली आत्मा को धर्मराज के पास जाने से पहले एक और देवता के पास जाना पड़ता है, जिन्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाता है। धर्मराज के मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा बताया जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं, जो जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।
मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है, तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा ब्योरा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी माना जाता है। यह मंदिर देश की राजधानी दिल्ली से करीब 500 किलोमीटर की दूरी पर हिमाचल के चंबा जिले में भरमौर उपमंडल में है।
कब और किसने बनाया धर्मराज का मंदिर
धर्मराज के मंदिर के साथ चौरासी परिसर को किसने और कब स्थापित किया इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। मगर इस मंदिर के टूटी सीढियों का जीर्णोद्धार चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में कराया था। माना जाता है कि जब 84 सिद्ध कुरुक्षेत्र से आए थे, जो मणिमहेश यात्रा के लिए भरमौर से गुजर रहे थे, तो वे यहां रात के लिए रूके थे, जिसके बाद इस मंदिर परिसर की स्थापना की गई ऐसी मान्यता है।
मंदिर को लेकर यह भी है एक मान्यता
चौरासी मंदिर परिसर से जुड़ा एक और किसा है ऐसा माना जाता है कि साहिल वर्मन के ब्रह्मपुरा (भरमौर का प्राचीन नाम) में प्रवेश के कुछ समय बाद, 84 योगियों ने इस जगह का दौरा किया। वे राजा की आतिथ्य से बहुत प्रसन्न थे। राजा की कोई भी संतान नहीं थी, तब योगियों ने राजा को वरदान दिया कि उसके यहां 10 पुत्रों का जन्म होगा। कुछ वर्षों के बाद राजा के घर दस बेटों और एक बेटी ने जन्म लिया। बेटी का नाम चंपावती रखा गया था, जिसके नाम पर चंबा नगर का नामकरण भी हुआ। चंपावती की पसंद के कारण ही ब्रह्मपुरा की नई राजधानी चंबा स्थापित की गई थी। कहा जाता है भरमौर का 84 मंदिर उन 84 योगियों को समर्पित किया गया था और उनके बाद इस मंदिर परिसर का नाम चौरासी रखा गया। चौरासी मंदिर परिसर में बड़े-छोटे 84 मंदिर हैं।
नोटः Reality News ने इस लेख को पहली बार 15 फरवरी 2021 को प्रकाशित किया था।
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