हिमाचल उपचुनाव : पहली बार पति-पत्नी एकसाथ विधायक, निर्दलीयों की भूमिका खत्म
हिमाचल प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा उपचुनाव में दो महत्वपूर्ण रिकॉर्ड बने हैं। पहली बार, किसी दंपति को सदन में एक साथ विधायक के रूप में देखने का अवसर मिलेगा। देहरा विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू की पत्नी कमलेश ठाकुर की जीत ने यह इतिहास रचा है। इसके अलावा, यह भी पहली बार हुआ कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कोई निर्दलीय विधायक नहीं होगा।
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 40 सीटें जीती थीं, और इस उपचुनाव के बाद एक बार फिर कांग्रेस ने 40 का आंकड़ा छू लिया है। इस उपचुनाव में कोई भी निर्दलीय उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर पाया, जिससे हिमाचल विधानसभा में पहली बार कोई निर्दलीय विधायक नहीं होगा।
मुख्यमंत्री की पत्नी की जीत से रचा गया इतिहास
देहरा विधानसभा सीट से कमलेश ठाकुर की जीत ने राज्य में एक नई मिसाल कायम की है। पहली बार, हिमाचल में पति-पत्नी एक साथ विधानसभा के सदस्य बनेंगे। इससे पहले, 2017 के विधानसभा चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह के निर्वाचित होने से एक रिकॉर्ड बना था, जिसमें वे सदन के सबसे पुराने और सबसे कम उम्र के सदस्य थे।
विधानसभा में निर्दलीय विधायकों की भूमिका समाप्त
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में निर्दलीय विधायकों की अहम भूमिका रही है। वर्ष 1967 में 16 निर्दलीय विधायकों के निर्वाचित होने के बाद, यह पहला मौका है जब कोई भी निर्दलीय उम्मीदवार विधानसभा में नहीं पहुंचेगा। वर्ष 2022 के चुनाव में तीन निर्दलीय विधायक थे, लेकिन इस उपचुनाव में किसी ने भी जीत हासिल नहीं की।
आखिर क्यों कराना पड़ा उपचुनाव ?
निर्दलीय विधायकों ने 22 मार्च को इस्तीफा दे दिया था और अगले दिन भाजपा में शामिल हो गए थे। विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने तीन जून को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया था और 10 जुलाई को उनकी खाली सीट पर उपचुनाव हुए। तीनों पूर्व निर्दलीय विधायकों को भाजपा से टिकट मिला था, लेकिन उनमें से दो उम्मीदवार कांग्रेस से हार गए, जबकि भजापा ने एक सीट जीती।
हिमाचल में निर्दलीय विधायकों की अहम भूमिका रही
राज्य की चुनावी राजनीति में निर्दलीय विधायकों की अहम भूमिका रही है। साल 1967 में 16 निर्दलीय निर्वाचित हुए, जबकि 1957 में 12, 1952 में आठ, 1972 और 1993 में सात-सात, 1977, 1982 और 2003 में छह-छह, 2012 में पांच, 1962, 2007 और 2022 में तीन-तीन, 1985 और 2017 में दो-दो तथा 1990 और 1998 में एक-एक निर्दलीय उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे।
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