हिमाचल में धारा-144, इसका इतिहास और कुछ अलग बातें जानें

हिमाचल प्रदेश में कोरोना संक्रमण के प्रसार को देखते हुए सरकार ने कोरोना कर्फ्यू लगा दिया है। इसके साथ ही धारा 144 भी लागू कर दी है। बीते वर्ष भी कोरोना कर्फ्यू के दौरान धारा-144 लागू की गई थी। वहीं नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर भी देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, उसको
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हिमाचल में धारा-144, इसका इतिहास और कुछ अलग बातें जानें

हिमाचल प्रदेश में कोरोना संक्रमण के प्रसार को देखते हुए सरकार ने कोरोना कर्फ्यू लगा दिया है। इसके साथ ही धारा 144 भी लागू कर दी है। बीते वर्ष भी कोरोना कर्फ्यू के दौरान धारा-144 लागू की गई थी। वहीं नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर भी देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, उसको देखते हुए भी कई जगहों पर धारा-144 लगा दी गई है। आइए इसका इतिहास और कुछ खास बातें जानते हैं…

​धारा-144 का इतिहास

कहा जाता है कि राज रत्न ईएफ देबू नाम के एक अफसर धारा 144 के शिल्पकार थे। उन्होंने ही इसके नियम बनाए थे और बड़ौदा स्टेट में 1861 में पहली बार इसका इस्तेमाल किया गया था। इसके इस्तेमाल से बड़ौदा स्टेट में अपराध पर काफी काबू पाया जा सका था। अफसर देबू को बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ ने स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया था।

​अंग्रेजों ने खूब किया इस्तेमाल

राष्ट्रवादी प्रदर्शनों पर शिकंजा कसने के लिए ब्रिटिश शासन में इसका बार-बार इस्तेमाल किया गया। गांधीजी जी इस कानून का उल्लंघन करके चंपारण सत्याग्रह को अंजाम दिया था। लेकिन धारा 144 न सिर्फ आजादी के बाद जारी रही बल्कि इसका इस्तेमाल भी खूब होता आ रहा है।

क्या है इसके तहत नियम?

सीआरपीसी की धारा 144 शांति कायम करने के लिए उस स्थिति में लगाई जाती है जब किसी तरह के सुरक्षा संबंधित खतरे या दंगे की आशंका हो। धारा-144 जहां लगती है, उस इलाके में पांच या उससे ज्यादा आदमी एक साथ जमा नहीं हो सकते हैं। धारा लागू करने के लिए इलाके के जिलाधिकारी द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी किया जाता है। धारा 144 लागू होने के बाद इंटरनेट सेवाओं को भी आम पहुंच से ठप किया जा सकता है। यह धारा लागू होने के बाद उस इलाके में हथियारों के ले जाने पर भी पाबंदी होती है।

​धारा-144 और कर्फ्यू के बीच फर्क

ध्यान रहे कि सेक्शन 144 और कर्फ्यू एक चीज नहीं है। कर्फ्यू बहुत ही खराब हालत में लगाया जाता है। उस स्थिति में लोगों को एक खास समय या अवधि तक अपने घरों के अंदर रहने का निर्देश दिया जाता है। मार्केट, स्कूल, कॉलेज आदि को बंद करने का आदेश दिया जाता है। सिर्फ आवश्यक सेवाओं को ही चालू रखने की अनुमति दी जाती है। इस दौरान ट्रैफिक पर भी पूरी तरह से पाबंदी रहती है।

​दिक्कत क्या है?

तक्षशिला संस्थान और विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी रिसर्च के शोधकर्ताओं ने एक शोधपत्र में धारा 144 की कमियों का उल्लेख किया है। इसके मुताबिक, ‘इसके तहत पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दी जाती है और इसको व्यापक पैमाने एवं भेदभावपूर्ण तरीके से लागू किया जा सकता है।’ और सबसे बड़ी बात यह है कि इसका उल्लंघन दंडनीय अपराध है।

 

​क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कुछ स्थिति में शांति बहाल करने के लिए इस तरह के प्रतिबंध सही हैं लेकिन इसके दुरुपयोग की भी संभावनाएं होती हैं। 2012 में रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार रोधी प्रदर्शनों के संबंध में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘सार्वजनिक शांति और सौहार्द को खतरे की अवधारणा वास्तविक होनी चाहिए यह काल्पनिक या संभावना जैसी स्थिति नहीं होनी चाहिए।’

​दंगों के अलावा भी इस्तेमाल

वैसे तो दंगे की स्थिति में धारा 144 लगाई जाती है लेकिन कई बार बहुत ही अजीब चीजों के लिए इसका इस्तेमाल किया गया। उदाहरण के लिए 2012 में दिल्ली पुलिस ने शराब की दुकानों और विक्रेताओं पर यह धारा लगा दी थी ताकि लोगों को दुकान के बाहर पीने से रोका जाए। कुछ खास प्रकार के ‘मंजा’ पर रोक लगाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इससे बिजली के बाधित होने या पतंग उड़ाने वालों को करंट लगने का खतरा होता है।

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