अनोखी है मंडी की महाशिवरात्रि, जानें हिमाचल के इस मेले का इतिहास

हिमाचल प्रदेश की विविध संस्कृति की तरह मंडी जिला की महाशिवरात्रि कई मायनों में अनोखी है। मंडी में होने वाली महाशिवरात्रि में देवताओं और लोगों के मिलन का नजारा कुछ अलग ही है।
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अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में थिरकन नृत्य ने मोहा सबका मन

वेब टीम। हिमाचल प्रदेश की विविध संस्कृति (Culture of Himachal Pradesh) की तरह मंडी जिला की महाशिवरात्रि (Mandi's Shivratri) कई मायनों में अनोखी है। मंडी में होने वाली महाशिवरात्रि में देवताओं और लोगों के मिलन का नजारा कुछ अलग ही है। हिमाचल के लगभग हर गांव के अपने देवता और देवताओं के गुर होते हैं। इन्हीं देवताओं की जलेब शिवरात्रि में पहुंचती है, जो इस खास बना देती है। जो भी देवी-देवता जिस स्थान से संबंध रखते हैं, वहां के लोग उनको पालकी या पीठ पर उठाकर मंडी के पड्डल मैदान तक लाते हैं।


मंडी शहर के राज देव माधो राय की पालकी से शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत होती है। इसी के जरिए भूतनाथ मंदिर में भगवान शिव (Lord Shiva) को न्योता दिया जाता है। महोत्सव में कमरुनाग देवता सबसे पहले आते हैं। इस मेले को शैव, वैष्णव और लोक देवता का संगम माना जाता है। शिवरात्रि के अगले 7 दिन तक मेला चलता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस मेले में शामिल होने के लिए पर्यटकों की भी काफी दिलचस्पी रहती है। इस साल 2 से 8 मार्च तक महाशिवरात्रि महोत्सव होगा। इस बार मेले में 216 देवी-देवताओं को प्रशासन के माध्यम से न्योता भेजा गया है।

लोगों का मानना है कि 1788 में मंडी के राजा ईश्‍वरी सेन ने जब मंडी रियासत की बागडोर संभाली थी तब उनके शासन काल में कांगड़ा के महाराजा संसार चंद की कैद से आजाद हुए थे। स्थानीय लोग अपने देवताओं के साथ राजा से मिलने मंडी पहुंचे थे। तब राजा की रिहाई और शिवरात्रि का एक साथ जश्न मनाया गया था। इसी तरह मंडी के शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत हुई। हालांकि इससे जुड़ी और भी कई कहानियां मशहूर हैं।
 

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