हिमाचल : युद्ध में विजय हासिल करने के लिए अर्जुन ने इस गांव में की थी चक्रव्यूह की रचना

जिला हमीरपुर के विधानसभा क्षेत्र नादौन के तहत आने वाले गांव राजनौण में  अज्ञातवास के दौरान  सोलहसिंगी धार के नीचे  वनखंडेश्वर महादेव मंदिर परिसर में आज भी पांडवों द्वारा की गई चक्रव्यूह की रचना देखने को मिलती है।  स्थानीय लोग जिसे गर्भजून भी कहते हैं । भारत के कुरूक्षेत्र के अलावा हमीरपुर जिले के राजनौण में चक्रव्यूह रचना हुई थी। 
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चक्रव्यूह की रचना

हमीरपुर ।   हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर देवी-देवताओं का निवास है ऐसी धारणा व्यक्त की जाती है। वर्तमान समय में किवदंतियों द्वारा कई देवी-देवताओं को साक्षात, सजीव व जीवंत माना जाता है।  महाभारत काल में पांडवों ने जिला हमीरपुर के विधानसभा क्षेत्र नादौन के तहत आने वाले गांव राजनौण में अज्ञातवास के दौरान कुछ समय गुजारा था। अज्ञातवास के दौरान यहां सोलहसिंगी धार के नीचे वनखंडेश्वर महादेव मंदिर परिसर में आज भी पांडवों द्वारा की गई चक्रव्यूह की रचना देखने को मिलती है।  भारत के कुरूक्षेत्र के अलावा हमीरपुर जिले के राजनौण में चक्रव्यूह रचना हुई थी। 

जिला हमीरपुर की तहसील नादौन के कस्बा धनेटा से दो किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा स्थान है जिसे धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व प्राप्त है। इस स्थान का नाम है राजनौण। इसका नाम राजनौण इसलिए रखा गया होगा कि शायद इस स्थान का संबंध राजा और नौण से रहा होगा। राजनौण में एक प्राचीनत धरोहर, दो मुख वाला शिवलिंग, विशाल टयाला, विशाल नौण और नौण के प्रांगण में खंडित हालत में पड़ा हुआ पाषाण पर उकेरा गया चक्रव्यूह, जिसे स्थानीय लोग गर्भजून कहते हैं।

यह स्थान धनेटा सोलहसिंगी धार पर स्थापित चामुखा के लिए बनाए गए मार्ग के दोनों ओर विकसित किया गया है। सोलहसिंगी धार की तराई पर बने इस स्थान पर जहां मानसिक शांति मिलती है, वहीं इसके ऐतिहासिक महत्व का भी आभास होता है। रास्ता पूर्व से पश्चिम दिशा को जाता है। रास्ते के उत्तर की ओर दोमुख वाला शिवलिंग, विशाल टियाला व नौण तथा नौण के प्रांगण में स्थापित चक्रव्यूह है। यह सारा ढांचा पाषाण से बनाया गया है।

पांडवों का चक्रव्यूह अध्ययन


मान्यता है कि पांडव अज्ञातवास के समय इस स्थान पर आए थे और चक्रव्यूह अध्ययन यहां किया गया था। लोगों की मान्यता है कि पाषाण पर बनाए गए चक्रव्यूह को पांडवों ने बनाया था और नौण का भी निर्माण पांडवों द्वारा किया गया, जिसका जीर्णोंद्धार बाद में नादौन के राजा द्वारा करवाया गया।

बैसाखी में आती है मां गंगा


स्थानीय लोगों का मानना है कि प्रत्येक वर्ष बैसाखी वाले दिन अढ़ाई घड़ी के लिए गंगा माता इस नौण में आती है। यह भी मान्यता है कि यदि किसी महिला को संतान सुख प्राप्त न हो तो नौण का पानी चक्रव्यूह से निकालकर उसे पिलाया जाए तो महिला की गोद भर जाती है। इसलिए इसे गर्भजून भी कहते हैं। नौण, टियाला व चक्रव्यूह एक सीध में बनाए गए हैं। टियाले के मध्य विशाल पेड़ है। टियाले को चढऩे के लिए उत्तर व दक्षिण से सीढिय़ां लगाई गई हैं। वैसा ही नौण बरामदे में बनाया गया है जहां पर चक्रव्यूह स्थापित है। नौण में बाहरी पानी न आए, इसके लिए तीनों ओर से नालियां बनाई गई हैं।

अर्धनारीश्वर शिवलिंग


टियाले के बिलकुल पीछे एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे दो खंडों में विभक्त शिवलिंग है जिसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग पुकारते है। यह जिला हमीरपुर में एकमात्र ऐसा शिवलिंग है। लोगों की मान्यता है कि यदि सूखे की संभावना हो तो स्थानीय लोग नौण से पानी निकालकर अखंड जलधारा इस शिवलिंग पर लगाएं और तब तक पानी चढ़ाते रहें जब तक वह नाले के पानी से न मिल जाए, तो २४ घंटे के अंदर वर्षा शुरू हो जाती है।

नाले पर ऐतिहासिक धरोहर


रास्ते की दूसरी ओर दक्षिण की तरफ व नौण के सामने एक ऐतिहासिक धरोहर स्थापित है, जिस पर विशाल मंदिर का निर्माण कर दिया गया है। यह ऐतिहासिक धरोहर विशेष प्रकार की शैली से बनाई गई है। इसका निर्माण एक नाले के ऊपर किया गया है। इस धरोहर के प्रांगण में गोलाकार व आयताकार विशाल शिलाएं हैं। गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर गणेश व द्वारपाल बनाए गए हैं। गर्भगृह से पानी की निकासी गौमुख से की गई है। हालांकि पहले यहां कोई मूर्ति नहीं थी, लेकिन मंदिर कमेटी ने विशाल मंदिर का निर्माण करके मूर्तियां स्थापित की हैं।

प्राकृतिक रूप से छेड़छाड़


वर्तमान में इसके प्राकृतिक रूप से छेड़छाड़ होने के कारण कई तथ्यों को समझाना मुश्किल हो रहा है। नौण के ऊपर सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग ने लैंटर डाल कर इसके वास्तविक रूप को बदल दिया है, वहीं मंदिर कमेटी ने धरोहर पर विशाल मंदिर का निर्माण करके इसके वास्तविक रूप को बदल दिया है। विशाल टयाले, मंदिर और नौण का प्राकृतिक स्वरूप बदल दिया गया है। यदि सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करे तो जहां एक ओर इस धरोहर के संरक्षण को बल मिलेगा, वहीं पर्यटक व आम जनता अपनी संस्कृति, इतिहास व सभ्यता से परिचित होगी।

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