भरमौर के होली में भी जोशीमठ जैसे हालात, आखिर कब जागेंगे सरकार और प्रशासन

चम्बा जिल के झरौता गांव में भी जोशीमठ जैसे हालात हैं। यहां के घरों में भी दरारें आने से लोग अस्थायी आश्रयों में चले गए हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग की टीम आकर झरौता गांव में हो रहे भूस्खलन के सर्वे करेगी।
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जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद झरौता गांव के लोगों के जख्मों को फिर कुरेद दिया है। गांव की 200 के करीब आबादी है। इस आबादी को अपने आशियाने झिनने का दर्द आज भी अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जोशीमठ में जहां 25,000 लोगों का जीवन दांव पर है, उसके विपरीत झरौता गांव खबरों से बाहर है, क्योंकि यह एक छोटा-सा गांव है। यहां केवल लगभग 200 लोग रहते हैं। जोशीमठ की तरह झरौता में भी शक की सुई एक जलविद्युत परियोजना की ओर इशारा कर रही है।

भरमौर। विकास के नाम पर विनाश के रास्ते पर जा रहे हैं हम। सरकारें धड़ाधड़ जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दे रहीं हैं, लेकिन इससे प्रभावित होने वाले लोगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जहां तक मीडिया की पहुंच है, वहां की छोटी-सी घटना भी पलों में इंटरनेशनल न्यूज बन जाती है, मगर हम जनजातीय क्षेत्र में रहते हैं। हम तक तक प्रशासन के अधिकारी भी नहीं पहुंच पाते, मीडिया तो दूर की बात है। यह कहना है हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले के भरमौर उपमंडल के झरौता गांव के लोगों का।

जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद झरौता गांव के लोगों के जख्मों को फिर कुरेद दिया है। गांव की 200 के करीब आबादी है। इस आबादी को अपने आशियाने झिनने का दर्द आज भी अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जोशीमठ में जहां 25,000 लोगों का जीवन दांव पर है, उसके विपरीत झरौता गांव खबरों से बाहर है, क्योंकि यह एक छोटा-सा गांव है। यहां केवल लगभग 200 लोग रहते हैं। जोशीमठ की तरह झरौता में भी शक की सुई एक जलविद्युत परियोजना की ओर इशारा कर रही है।


जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद झरौता गांव के लोगों के जख्मों को फिर कुरेद दिया है। गांव की 200 के करीब आबादी है। इस आबादी को अपने आशियाने झिनने का दर्द आज भी अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जोशीमठ में जहां 25,000 लोगों का जीवन दांव पर है, उसके विपरीत झरौता गांव खबरों से बाहर है, क्योंकि यह एक छोटा-सा गांव है। यहां केवल लगभग 200 लोग रहते हैं। जोशीमठ की तरह झरौता में भी शक की सुई एक जलविद्युत परियोजना की ओर इशारा कर रही है।

जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद झरौता गांव के लोगों के जख्मों को फिर कुरेद दिया है। गांव की 200 के करीब आबादी है। इस आबादी को अपने आशियाने झिनने का दर्द आज भी अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जोशीमठ में जहां 25,000 लोगों का जीवन दांव पर है, उसके विपरीत झरौता गांव खबरों से बाहर है, क्योंकि यह एक छोटा-सा गांव है। यहां केवल लगभग 200 लोग रहते हैं। जोशीमठ की तरह झरौता में भी शक की सुई एक जलविद्युत परियोजना की ओर इशारा कर रही है।


झरौता गांव 180 मेगावाट बजोली-होली जलविद्युत परियोजना की 15 किलोमीटर लंबी और 5.6 मीटर चौड़ी सुरंग के मुहाने के नीचे बसा है। निवासियों का कहना है कि सुरंग में रिसाव के बाद पहली बार 2021 की सर्दियों में घरों की दीवारों पर दरारें देखीं। उसके बाद हुए भूस्खलन से छह घर ढह गए और कई अन्य रहने के लिए असुरक्षित हो गए, इसलिए लोग अस्थायी आश्रयों में चले गए और यहां तक कि तंबुओं में रातें बिताईं। 

जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद झरौता गांव के लोगों के जख्मों को फिर कुरेद दिया है। गांव की 200 के करीब आबादी है। इस आबादी को अपने आशियाने झिनने का दर्द आज भी अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जोशीमठ में जहां 25,000 लोगों का जीवन दांव पर है, उसके विपरीत झरौता गांव खबरों से बाहर है, क्योंकि यह एक छोटा-सा गांव है। यहां केवल लगभग 200 लोग रहते हैं। जोशीमठ की तरह झरौता में भी शक की सुई एक जलविद्युत परियोजना की ओर इशारा कर रही है।


गांव के निवासी राज कुमार, अनूप कुमार, अजय कुमार, राकेश कुमार और जमीन धंसने के बाद अपने आशियानों को उजाड़ता देखने वाले राजेश कुमार और विक्रम सिंह ने बताते हैं कि एक साल बाद भी सुरंग से रिसाव जारी है। गांव की जमीन में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। पूरा गांव तबाह हो रहा है और बरसात के दौरान यहां स्थिति और भी खराब हुई थी और आगामी बरसात में भी और खराब होने के आसार हैं। लोगों का कहना है कि अभी तक गांव को बचाने के लिए सरकार और प्रशासन की ओर से कोई कदम नहीं उठाए गए हैं।

जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद झरौता गांव के लोगों के जख्मों को फिर कुरेद दिया है। गांव की 200 के करीब आबादी है। इस आबादी को अपने आशियाने झिनने का दर्द आज भी अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जोशीमठ में जहां 25,000 लोगों का जीवन दांव पर है, उसके विपरीत झरौता गांव खबरों से बाहर है, क्योंकि यह एक छोटा-सा गांव है। यहां केवल लगभग 200 लोग रहते हैं। जोशीमठ की तरह झरौता में भी शक की सुई एक जलविद्युत परियोजना की ओर इशारा कर रही है।

एसडीएम भरमौर असीम सूद का कहना है कि झरौता गांव में हुए भूस्खलन के आकलन के लिए भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग को लिखा गया है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग की टीम आकर झरौता गांव में हो रहे भूस्खलन के सर्वे करेगी और उसकी रिपोर्ट के आधार पर आगामी कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि जल विद्युत परियोजना के निर्माण में जुटी कंपनी ने भी टनल में पानी बंद कर दिया है, जिन स्थानों पर रिसाव हो रहा था, वहां विदेशी विशेषज्ञों की टीम के साथ उसके रोकने के दिशा में कंपनी कार्य कर रही है।  

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