Himachal : दियोटसिद्ध मंदिर में चैत्र मास के मेले की शुरूआत कब और कैसे हुई, इस बारे कोई वैद्धिक प्रमाण नहीं मिला
हमीरपुर । उत्तरी भारत के सिद्धपीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध (Baba Balak Nath Temple Deotsidh) में वैसे तो सारा साल ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लेकिन 14 मार्च से दियोटसिद्ध मंदिर (Deotsidh Temple) में हर वर्ष त्रैमासिक चाला मेले का शुभारंभ होता है। जिसमें उत्तरी भारत के देश-विदेशों में रह रहे श्रद्धालु विशेष रूप से बालयोगी की पावन गुफा में शीश नवाते हैं। चैत्र मास के मेले की शुरूआत कब और कैसे हुई इस बारे कोई वैद्धिक प्रमाण नहीं मिलता है।
लेकिन किवंदतियों के मुताबिक कुछ लोगों ने इस पुण्य संक्रांति को बालयोगी बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) का जन्म दिन बताया है, तो कुछ लोगों के अनुसार माता रतनों के साथ 12 वर्ष का समय बिताने के बाद सिद्धयोगी बाबा बालक नाथ धौलगिरी पर्वत के उच्च शिखर में प्रविष्ट होकर दियोट नामक राक्षस की गुफा में प्रकट होना बताया। अत: बाबा के प्रकटो दिवस के रूप में मानने वाले इसी दिन को मेले की शुरूआत मानते हैं।
बताते चलें कि चैत्र माह के मेले का विशेष महत्व है, माना जाता है कि इन मेलों में अगर सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) की पूजा अर्चना व हवन डाला जाए तो सिद्ध बालयोगी साक्षात दर्शन देते हैं। कहते हैं सिद्ध बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) कलियुग में साक्षात भगवान शिव शंकर का बाल रूप हैं, क्योंकि माता पार्वती जी ने बाबा बालक नाथ को बाल रूप में रहने का वरदान दिया था व भगवान शंकर के दर्शन करवाए थे। भगवान शिव शंकर जी ने बाबा जी को वरदान दिया था कि आप कलियुग में विभिन्न कष्टों से पीडि़त लोगों को कष्टों से मुक्ति प्रदान करोगे व बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) के नाम से जाने जाओगे।
बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार जब ऋषि व्यास के पुत्र शुकदेव का जन्म हुआ तो उसी समय 48 सिद्धों ने भी विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। इनमें बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) भी एक थे। बाबा जी मूल रूप से बालयोगी हैं, तथा दत्तात्रेय के शिष्य थे। बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) ने हर युग में जन्म लिया है। सतयुग में उन्हें स्कंद, त्रेतायुग में कौल, द्वापर में महाकौल तथा कलियुग में बाबा बालक नाथ के रूप में जन्म लिया। जनश्रुति के अनुसार बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) ने काठियावाड़ गुजरात में जन्म लिया।
इनके पिता का नाम विष्णु नारायण तथा माता का नाम लक्ष्मी था। वह बाल्यवस्था में ही घर छोडक़र गिरनार पर्वत के दामन में जूनागढ़ के महंत दत्तात्रेय के पास पंहुचे। अपने गुरू से बाबा जी ने नाथ सम्प्रदाय की शिक्षाएं प्राप्त की और सिद्ध पुरूष बन गए। इससे इनकी ख्याति चारों ओर फैल गई। बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) ने लोगो को सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्ररेणा व शिव आराधना करने की प्ररेणा दी। चैत्र मास के मेले में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं का मानना है कि मेले के दिनों में मंदिर आने से बाबा जी की पूरी कृपा उनके परिवारों पर बनी रहती है। इसलिए श्रद्धालु इन्हीं दिनों में देश तथा विदेश के विभिन्न स्थानों से यहां आना पसंद करते हैं। जिसमें उत्तरी भारत के देश-विदेशों में रह रहे श्रद्धालु विशेष रूप से बालयोगी की पावन गुफा में शीश नवाते हैं।
मान्यता के अनुसार माता रतनों के साथ 12 वर्ष का समय बिताने के बाद सिद्धयोगी बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) शाहतलाई से धौलगिरी पर्वत के उच्च शिखर में प्रविष्ट होकर दियोट नामक राक्षस की गुफा में प्रकट हुए थे। बाबा जी 12 वर्ष तक गुफा में तपस्या में लीन रहे, एक दिन बाबा जी ने अपने सेवक को आदेश दिया कि वह अब गुफा में ब्रहामलीन हो रहे हैं व आप धूने की परम्परा को चलाए रखना व नियमित पुजा करते रहना।
आज भी यहां दीपक जलता रहता है और इसकी लौ दूर दूर तक दिखाई देती है। इसी कारण गुफा में पूजा अर्चना करने व शीश नवाने का विशेष महत्व है। बाबा जी की पवित्र गुफा में श्रद्धालुओं द्वारा रोट प्रसाद चढ़ाया जा रहा है। बाबा जी के दर्शन, स्तुति पाठ करने मात्र से ही विभिन्न रोगों, कष्ट व भूत-प्रेत-आत्मा व भय आदि सब से मुक्ति मिल जाती है।
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