935 ग्लेशियर झीलों से Himachal pradesh पर मंडरा रहा उत्तराखंड जैसी आपदा का खतरा

RNN DESK। हिमाचल प्रदेश में लगभग 935 ग्लेशियर झीलों के टूटने का खतरा मंडरा रहा है, जिससे यहां भी उत्तराखंड जैसी त्रासदी का अंदेशा है। इनमें से 95 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाली गेपंग गथ राज्य की सबसे बड़ी हिमनद झील है, जो लाहौल-स्पीति जिले के सिसु गांव में है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि
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935 ग्लेशियर झीलों से Himachal pradesh पर मंडरा रहा उत्तराखंड जैसी आपदा का खतरा

RNN DESK। हिमाचल प्रदेश में लगभग 935 ग्लेशियर झीलों के टूटने का खतरा मंडरा रहा है, जिससे यहां भी उत्तराखंड जैसी त्रासदी का अंदेशा है। इनमें से 95 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाली गेपंग गथ राज्य की सबसे बड़ी हिमनद झील है, जो लाहौल-स्पीति जिले के सिसु गांव में है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसी संभावित झीलों में खतरनाक वृद्धि होती है जो किसी एक या अन्य कारणों से टूटने की स्थिति में विनाशकारी हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि नियमित निगरानी पूर्व-आपदा की तैयारियां ही इस तरह की घटना से निपटने का एकमात्र तरीका है।

 

 

स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (ISRO) अहमदाबाद और हिमाचल प्रदेश स्टेट सेंटर में जलवायु परिवर्तन पर ग्लेशियर झीलों का एक ताजा अध्ययन किया जा रहा है और यह अगले कुछ महीनों में पूरा होने की संभावना है। हिमाचल प्रदेश, जलवायु परिवर्तन और अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र पर तैयार IRS LISS-III सैटेलाइट डेटा (2019) का उपयोग करते हुए हिमाचल प्रदेश के सतलुज, ब्यास, चिनाब और रावी बेसिन में इन्वेंटरी की मोराइन डैमेड ग्लेशियर झीलों (जीएलओएफ) पर एक तकनीकी रिपोर्ट बना रही है।

935 ग्लेशियर झीलों से Himachal pradesh पर मंडरा रहा उत्तराखंड जैसी आपदा का खतरा

 

 

मानव जीवन के लिए संभावित खतरा

रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे संकेत हैं कि अधिकांश ग्लेशियरों की स्थानिक सीमा बहुत तेज़ी से बदल रही है और इससे मोराइन-डैमेज झीलों का निर्माण हो रहा है। इससे राज्य के बर्फ से ढंके पर्वतीय क्षेत्रों से निकलने वाले कई जल निकासी प्रणालियों के निचले इलाकों में बुनियादी ढांचे और मानव जीवन के लिए एक संभावित खतरा पैदा हो गया है।

 

विनाश का हो सकता है कारण

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज के प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी एसएस रंधावा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में भी उत्तराखंड जैसी आपदा का खतरा मंडरा रहा है। जहां ग्लेशियर झील का नष्ट होना विनाश के पीछे का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि हिमस्खलन, भूस्खलन, भारी वर्षा या भूकंप फटने जैसी स्थितियां हो सकती हैं।

 

कुछ दिनों में तैयार होगी रिपोर्ट

रंधावा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज एंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (इसरो) अहमदाबाद सतलुज, ब्यास, चिनाब और रवि बेसिन में ग्लेशियर झीलों का ताजा अध्ययन कर रहा है ताकि अधिक विस्तृत जानकारी एकत्र की जा सके, और अगले कुछ दिनों में एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी।

 

 

मुख्यमंत्री ने कहा सबक सीखने की जरूरत

मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश को पनबिजली परियोजनाओं की योजना के संबंध में चमोली की घटना से सबक सीखने और हाइडल परियोजना के लिए स्थलों की पहचान करने की आवश्यकता है।

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