भगवान भोले नाथ के अंश अवतार है बाबा बालक नाथ
हमीरपुर । उपमंडल बड़सर की ग्राम पंचायत चकमोह के धौलगिरी पर्वत पर स्थित बाबा बालक नाथ धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत का एक दिव्य सिद्धपीठ है। चैत्र मास को बाबा बालक नाथ की भक्ति का महीना माना जाता है और पुरातन काल से दियोटसिद्ध धाम में हर साल चैत्र मेलों का आयोजन होता है। चैत्र मेलों के दौरान देश -विदेश से लाखों श्रद्धालु पौणाहारी के दरबार दर्शनों के लिए पहुंचते है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों युगों में होता रहा है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव के अंश अवतार है। श्रद्धालु उन्हें श्रद्वा से इन्हें दूधाधारी, पौणाहारी, रत्नों दा लाल सहित कई नामों से भी बुलाते हैं। प्राचीन उलेखों के अनुसार बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की आयु में ही अपना घर छोडक़र चार धाम की यात्रा करते करते जिला बिलासपुर के शाहतलाई में पहुंचे। इसे बाबाजी की तपस्थली के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि शाहतलाई नामक स्थान की रहने वाली रत्नों माई, जिनकी अपनी कोई सन्तान नहीं थी, उन्होंने बाबाजी को अपना धर्म का पुत्र बनाया था। बाबा जी ने 12 साल तक माई रत्नों की गऊए चराई। एक दिन माता रत्नों के ताना मारने पर बाबा बालक जी ने अपने चमत्कार से एक पल में ही माई रत्नों के 12 साल की लस्सी व रोटियाँ लौटा दी।
इस घटना की जब आसपास के क्षेत्रों में चर्चा हुई तो ऋषि, मुनि व अन्य लोग बाबाजी के चमत्कार से प्रभावित हुए। जब गुरु गोरख नाथ जी को जब इस चमत्कारी बालक के बारे में जानकारी लगी, तो वे बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाने के लिए शाहतलाई पहुंचे। बाबाजी के मना करने पर गुरु गोरख नाथ जी बहुत गुस्सा हुए। गुरु गोरख नाथ जी ने बाबाजी को जबरदस्ती अपना चेला बनाना चाहा, लेकिन बाबाजी शाहतलाई से उड़ारी मारकर धौलगिरी पर्वत पर पहुंच गए। जहां आजकल बाबाजी की पवित्र गुफा है। मंदिर के मुख्य गेट पर ही बाबाजी का अखंड धुणा है, जो भक्तों की आस्था का केंद्र है। इसके साथ ही बाबा जी का चिमटा है।
बाबाजी की गुफा के ठीक सामने एक सुंदर गैलरी का निर्माण किया गया है, जहां से महिलाएं बाबाजी की पवित्र गुफा के अंदर प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन करती है। यह परम्परा पुरातन कल से चली आ रही है। हालांकि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर किसी प्रकार की कोई रोक नहीं है, लेकिन पुरातन परम्पराओं के लिहाजे से ही महिलाएं आज भी बाबाजी की गुफा के सामने बनी इसी गैलरी से बाबाजी के दर्शन करती है। श्रद्धालु बाबाजी को खुश करने के लिए रोट प्रसाद का चढ़ावा चढ़ाते है।
इसलिए नाम पड़ा दियोटसिद्ध
पुरातन गाथाओं के अनुसार बताया जाता है कि जब बाबाजी इस गुफा में आलोप हुए, तो यहां एक दीपक जलना शुरू हुआ, जिसकी रोशनी दूर दूर तक जाती थी। इस कारण इस गुफा व पहाड़ी का नाम दियोटसिद्ध पड़ा। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां अपने सच्चे मन से फरियाद लेकर पहुंचता है बाबाजी उनकी आस्था के अनुसार फल देते है। चैत्र महीने को बाबाजी की भक्ति का महीना भी माना जाता है। इसलिए यहां हर साल चाला मेलों का आयोजन होता है।
इस दौरान देश -विदेश से हजारों लाखों श्रद्धालु यहां आशीर्वाद लेने पहुंचते है। वर्तमान समय में श्रद्धालुओं की आस्था अनुसार मंदिर को आनलाइन किया गया है। इसके चलते अब देश - विदेश में बैठे बाबाजी के श्रद्धालु आनलाइन भी बाबाजी की आरती व पूजा घर बैठे देख सकते है।