अवसरवादियों से सावधान रहे आप तो हिमाचल की सत्ता का रास्ता साफ !
आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश की सियासत में कदम रखने जा रही है। पार्टी ने अभी से प्रदेश में चुनावी अभियान का आगाज कर दिया है। शिमला में हाल ही में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन रोड शो कर चुके हैं। अब 6 अप्रैल को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिला मंडी में रोड शो से चुनावी आगाज की तैयारियां चल रही हैं। हिमाचल में आम आदमी पार्टी की दस्तक ने भाजपा-कांग्रेस का दहशत में डाल दिया है। कांग्रेस के कई नेता आम आदमी पार्टी के हो गए हैं। लेकिन इसी बीच स्वच्छ और स्वस्थ लोकतंत्र को ठेस पहुंचती दिख रही है।
यह भी पढ़ेंः-हिमाचल में 'आप' को मिला चुना हुआ प्रतिनिधि, कांग्रेस जिला परिषद ने दिया इस्तीफा
जिस तरह से आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता कह रहे हैं कि भाजपा और कांग्रेस के कई दिग्गज आम आदमी पार्टी में शामिल होंगे, तो यह अच्छी बात नहीं है। दूससे पार्टियों को नेताओं को अपने साथ जोड़ने की प्रक्रिया से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि लोकतंत्र में अब नेताओं का लक्ष्य सरकार बनाना और सत्ता में बने रहना हो गया है। इसके लिए उन्होंने जनसेवा की राजनीति का मूल उद्देश्य भी भुला दिया। आज की तारीख में सांसद और विधायक बाजार में मौजूद सामान की तरह हो गए हैं, जिन्हें चांदी के टुकड़े देकर खरीदा जा सकता है। यह पूरी प्रक्रिया बस इसलिए चल रही है कि सरकारें बने या चल सकें।
यह भी पढ़ेंः-हिमाचल में युकां प्रदेशाध्यक्ष ने छोड़ा कांग्रेस का हाथ, 23 नेता ने थामा 'आप' का झाड़ू
चुनाव से पहले होने वाला दलबदल अब राजनीतिक हथकंडों का हिस्सा बन गया है। इसका मकसद अस्थायी और अनिर्णीत मतदाताओं के बीच एक धारणा कायम करना होता है। दरअसल, ऐसे लोग अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहते हैं और वे उसी पार्टी के पक्ष में चले जाते हैं, जिसके जीतने की उम्मीद सबसे ज्यादा होती है। ऐसे दलबदलुओं के मन में मुख्य रूप से सत्ता की लालसा होती है। इसके अलावा उन्हें यह भी डर होता है कि शायद उनकी पार्टियां उन्हें दोबारा टिकट नहीं देंगी। कई बार दलबदल नाराजगी की वजह से भी देखा जाता है, क्योंकि ऐसे नेता किसी को सबक सिखाने के मकसद से पार्टी बदल लेते हैं।
यह भी पढ़ेंः-हिमाचल में सीएम के गढ़ में रोड शो करेगी आप, जानें मंडी पर फोकस की वजह
एक माकूल विश्लेषण से पता चलता है कि चुनाव से पहले हुए दलबदल से शायद ही कोई राजनीतिक पार्टी मजबूत हो पाती है। दरअसल, अगर यह दलबदल किसी खास शख्सियत, समुदाय या जाति के बड़े नेता से ताल्लुक नहीं रखता है तो मतदाता वोट डालते वक्त ऐसे दलबदल को खारिज कर देते हैं। ऐसे नेता छोटे निर्वाचन क्षेत्रों में कामयाबी हासिल कर लेते हैं, क्योंकि अपने क्षेत्र में उनका मतदाताओं से सीधा संपर्क होता है, लेकिन बड़े निर्वाचन क्षेत्रों में दल बदलने वाले नेता को खारिज कर दिया जाता है। आप को हिमाचल में सत्ता हासिल करनी है तो उसे नए चेहरों को मैदान में उतारना होगा और उन्हीं चेहरों के सहारे चुनाव अभियान शुरु करना होगा।