हिमाचल उपचुनावः बागियों से घिरी भाजपा को कारगिल युद्ध का सहारा
उपचुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए कारगिल युद्ध और सेना के शौर्य को आगे कर जयराम सरकार और भाजपा चुनावी नैया पार लगाने की चाहत में है।
धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश (Himachal) में चार सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव (By Election) में मतदाताओं को रिझाने के लिए कारगिल युद्ध (Kargil War) और सेना के शौर्य को आगे कर जयराम सरकार और भाजपा चुनावी नैया पार लगाने की चाहत में है। प्रदेश की वर्तमान सियासत से मूल और जनता से जुड़े मुद्दे गायब हो चुके हैं। मंडी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी बिग्रेडियर खुशाल ठाकुर कारगिल युद्ध के नायक थे। भाजपा उनकी सेना की पृष्ठभूमि पर सवार हो चुकी है। भाजपा ने खुशाल ठाकुर के कारगिल युद्ध और उनके सैन्य जीवन को लेकर एक वीडियो वायरल किया है। और इस वीडियो को घर-घर पहुंचाया जा रहा है।
संभवत: भाजपा को इस सबका फायदा भी मिल जाए। लेकिन बड़ा मसला भाजपा के उन नेताओं को लेकर है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें जयराम सरकार और संगठन मंत्री पवन राणा ने चार वर्षों में हाशिए पर डाल रखा है। कुल्लू के दिग्गज भाजपा नेता महेश्वर सिंह लंबे समय से जयराम से नाराज हैं। संगठन में भी वे दरकिनार हैं। महेश्वर सांसद और पूर्व में भाजपा के अध्यक्ष तक रह चुके हैं। कुल्लू और मंडी के देव समाज में उनका विशेष दखल है। वह टिकट के तलबगार थे, लेकिन मिला नहीं। कुल्लू से ही पूर्व भाजपा अध्यक्ष खीमी राम भी हाशिए पर हैं।
सरकार और संगठन ने मंडी से ही भाजपा नेता प्रवीण शर्मा को भी किनारे कर रखा है। सरकाघाट से भाजपा विधायक कर्नल इंद्र सिंह को भी चार सालों से हाशिए पर रखा हुआ है। उनका तो जयराम सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह से पिछले दिनों टकराव भी हो चुका है। मंडी सदर से भाजपा विधायक अनिल शर्मा भी जयराम सरकार व भाजपा के साथ नहीं हैं। हालांकि अनिल शर्मा ने भाजपा की टिकट पर वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ा था और जीते भी थे। हालांकि संसदीय चुनावों में बेटे आश्रय शर्मा को टिकट की टिकट मिली थी, जिसके बाद धर्मसंकट में मंत्री पद छोड़ दिया था।
अर्की विधानसभा हलके में भी चार साल में तमाम स्थानीय नेताओं को सरकार व संगठन ने ठिकाने लगाए रखा। यही वजह रही कि बीते दिनों जब अर्की से दो बार विधायक रहे गोबिंद राम शर्मा और जिला परिषद सदस्य आशा परिहार से मुख्यमंत्री मिलने गए तो इन नेताओं ने मुख्यमंत्री की बात नहीं मानी और प्रचार में नहीं उतरे। जुब्बल कोटखाई से भाजपा विधायक रहे नरेंद्र बरागटा जब जीवित थे तब सरकार व संगठन के तौर पर ऐसा कोई भी मौका नहीं छोड़ा गया जब उनकी फजीहत नहीं की गई हो। उनके निधन के बाद उनके बेटे चेतन बरागटा से जो सलूक भाजपा ने किया है, वह तो कोई दुश्मन से भी नहीं करता। चेतन बरागटा अब बागी बन चुनाव मैदान में है।
फतेहपुर में पूर्व सांसद कृपाल परमार टिकट के तलबगार थे, मगर पता काट दिया गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के आधिकारिक प्रत्याशी कृपाल परमार के खिलाफ बागी बनकर आजाद प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे बलदेव ठाकुर को इस बार भाजपा ने टिकट दे दिया। अब कृपाल परमार भाजपा के संगठन मंत्री पवन राणा को कोस रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने पवन राणा को 2022 के चुनावों के लिए धैर्य रखने के लिए तक कह दिया है। इसके अलावा भाजपा से बहुत पहले बगावत कर चुके राजन सुशांत ने फतेहपुर में लंबा आंदोलन छेड़ रखा था। वे भी इस बार फतेहपुर से आजाद प्रत्याशी बन चुनाव मैदान में हैं।
कुल मिलकर जिस तरह से इन उपचुनावों में भाजपाइयों ने बगावत की है उससे साफ है कि उन्हें आलाकमानका भी डर नहीं है। जब किसी सरकार और संगठन में इतने सारे अपने नाराज बैठे हों तो यह जाहिर-सा बात है कि करगिल और सेना के शौर्य को आगे करके क्या चुनाव में विजय हासिल की जा सकती है। अब देखना यह है कि क्या जयराम ठाकुर और संगठन मंत्री पवन राणा अपनी राजनीतिक बिसात से जीत का कोई मोहरा निकाल पाते हैं या नहीं। और इसका परिणाम 2 नवंबर को आप सबके सामने होगा।