बुशैहर के अंतिम राजा से लेकर वीरभद्र सिंह का 87 साल की उम्र तक का सफर

धर्मशाला। हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह ऐसा नाम है, जो हर हिमाचली जुवान पर है। वीरभद्र सिंह के निधन के साथ ही हिमाचल प्रदेश और देश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह चम्बा से सिरमौर और काजा से भरमौर तक जनता के सर्वमान्य लोकप्रिय नेता
 

धर्मशाला। हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह ऐसा नाम है, जो हर हिमाचली जुवान पर है। वीरभद्र सिंह के निधन के साथ ही हिमाचल प्रदेश और देश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह चम्बा से सिरमौर और काजा से भरमौर तक जनता के सर्वमान्य लोकप्रिय नेता थे। छह बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के निधन से पूरे प्रदेश में शोक की लहर है। हर कोई उन्हें याद करके उनके किस्सों को शेयर कर रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री काल में वो राजनीति में सक्रिय रहे।

हिमाचल प्रदेश की तरक्की में वीरभद्र सिंह अहम योगदान रहा है। 6 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भरपूर विकास कार्य करवाए। हिमाचल के लगभग हर कोने में उनके कदम पहुंचे हैं। हिमाचल प्रदेश के किसी भी कोने में जाकर चर्चा करेंगे तो लोग हमेशा कहेंगे एक वह यहां आए थे। हिमाचल की जनता में उन्हें राजा नहीं फकीर हैं, हिमाचल की तकदीर हैं के नारे से याद किया जाता रहेगा। यह कथन बेशक आज अहमियत न रखता हो, पर तब जरूर अहम था जब सड़कों के बिना हर क्षेत्र दुर्गम था। जहां गाड़ी नहीं पहुंच पाती थे, वहां घोड़े, खच्चर, पालकी और पैदल ही पहुंच जाते थे।

1962 में कांग्रेस में शामिल हुए

बुशैहर रियासत के राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले वीरभद्र सिंह हिमाचल के छह बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वीरभद्र सिंह ने 30 जनवरी, 1962 को दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। इससे दो दिन पहले ही उन्हें कांग्रेस ने महासू से अपना संसदीय उम्मीदवार घोषित कर दिया था। वीरभद्र सिंह दावा करते थे कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में एक घंटे के लिए भी कांग्रेस नहीं छोड़ी। न ही उन्हें कभी ऐसा करने का विचार उनके मन में आया।

यह भी पढ़ेंः-पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का निधन, अढाई महीने से थे उपचाराधीन

इंदिरा गांधी ने बनाया केंद्रीय मंत्री

वीरभद्र सिंह कहते थे कि कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा के कारण ही उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के साथ ही तीन बार केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला। कहते थे कि आज लगभग सभी राजनीतिक दलों में आया राम, गया राम का है लेकिन उन्हें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि उन्हें कांग्रेस में नहीं रहना चाहिए। वह कहते थे कि कुछ मौकों पर पार्टी नेताओं से मतभेद जरूर हुए लेकिन कभी भी किसी से मनभेद नहीं हुआ। यही कारण है कि वह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने।

नहीं छुटा सत्ता का मोह

बढ़ती उम्र और अदालती मामलों में जूझने के बावजूद सत्ता से वीरभद्र सिंह का मोह नहीं छूटा था। यही वजह है कि 87 साल की उम्र तक वह जनता के प्रतिनिधि रहे। 2017 के चुनावों के वक्त वीरभद्र सिंह भाजपा पर कम कांग्रेस पर अधिक हल्ला बोलते रहे थे। अंत में उन्होंने अर्की से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते भी। यह उनका अपना तरीका था। वीरभद्र सिंह को मीडिया में बने रहने का भी हुनर था। वह मीडिया मेनेजमेंट के नुस्खे के साथ अपने विरोधियों पर हमला बोलते थे।

हिमाचल की जनता का है कर्ज

वीरभद्र सिंह कई मौके पर कहते थे कि प्रदेश की जनता ने उन्हें बहुत प्यार दिया है। अगर वह पांच जन्म भी लेते हैं तो भी इस प्यार का ऋण नहीं चुका सकते। सक्रिय राजनीति में वीरभद्र सिंह ने इस लम्बे सफल राजनीतिक जीवन के लिए कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा और प्रदेश की जनता के स्नेह और प्यार का नतीजा बताते रहे हैं। अगर 2017 में भी कांग्रेस बहुमत में आती तो स्पष्ट था कि वह सातवीं बार भी सीएम बनते।