सहकारी बैंक उपभोक्ताओं के लिए बनाएगा वन टाइम सेटलमेंट पॉलिसी, जानें फायदे और नुकसान

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने राज्य सहकारी बैंक को उपभोक्ताओं की सुविधा देने के लिए वन टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) नीति बनाने के निर्देश दिए हैं।
 

शिमला। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने राज्य सहकारी बैंक को उपभोक्ताओं की सुविधा देने के लिए वन टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) नीति बनाने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने वीरवार को बैंक के अध्यक्ष देवेंद्र श्याम और प्रबंध निदेशक श्रवण मांटा के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की। इसमें नाबार्ड और भारतीय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर वन टाइम सेटलमेंट नीति विकसित करने के निर्देश दिए गए हैं।

मुख्यमंत्री ने बताया कि इस नीति का उद्देश्य है हजारों किसानों, बागवानों, और अन्य बैंक ऋण लेने वालों को सहायता प्रदान करना, ताकि उन्हें अपने बकाया का निपटान करने में मदद मिले। इससे उन्हें कानूनी कार्रवाई से बचाया जा सकेगा और सफल निपटान के बाद उनका क्रेडिट स्कोर भी सुधरेगा। इसके साथ ही, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की पुनर्प्राप्ति, ऋण प्राप्ति, और बैंक के समग्र वित्तीय सुधार में भी बैंक को लाभ होगा।

मुख्यमंत्री ने बताया कि इस नीति से लगभग पांच हजार लोगों को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक और जोगिन्द्रा केंद्रीय सहकारी बैंक को भी अपने उपभोक्ताओं के हित में ऐसी वन टाइम सेटलमेंट नीति तैयार करने के लिए समान निर्देश जारी किए जाएंगे।

बैंक की ओर से दी जाने वाली वन टाइम सेटलमेंट का मुख्य उद्देश्य ऋणधारकों के बकाया राशि का निपटान करना है। इस प्रक्रिया के नुकसान और फायदे निम्नलिखित हो सकते हैं...

वन टाइम सेटलमेंट के नुकसान

  1. बैंक का नुकसान: बैंक सेटलमेंट के दौरान, जब ऋणधारक अपने बकाया का पूरा निपटान करता है, तो बैंक को उसके खोए गए ब्याज और अन्य शुल्कों का नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, बैंक को कई बार कानूनी कार्रवाई करने की आवश्यकता हो सकती है जो नुकसानजनक हो सकती है।

  2. ऋणधारक का नुकसान: ऋणधारक को बैंक सेटलमेंट के लिए पूरे बकाया राशि को एक बार में चुक्ति करनी पड़ती है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति पर बोझ बढ़ सकता है। यह उसके लिए आर्थिक चुनौती पैदा कर सकता है।

वन टाइम सेटलमेंट के फायदे

  1. बैंक को लाभ: बैंक को सेटलमेंट के माध्यम से ऋणधारकों से बकाया राशि मिलती है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति में सुधार होता है।

  2. ऋणधारक का फायदा: ऋणधारक को एक बार में पूरे बकाया राशि का निपटान करने का अवसर मिलता है, जिससे उसका क्रेडिट स्कोर सुधर सकता है और वित्तीय स्थिति में सुधार हो सकता है।

  3. कानूनी छूट: सेटलमेंट के माध्यम से ऋणधारकों को कानूनी कार्रवाई से बचने का मौका मिलता है, क्योंकि वे बैंक से बकाया राशि का पूरा निपटान कर रहे हैं।

  4. ब्याज और शुल्क से बचाव: जब ऋणधारक बैंक सेटलमेंट करता है, तो उसे ब्याज और अन्य शुल्कों से बचाव होता है, जो वित्तीय बोझ को कम कर सकता है।