Kullu Dussehra : पहली बार भगवान रघुनाथ रथयात्रा के साक्षी बना कोई PM, नरेंद्र मोदी के नाम इतिहास दर्ज  

भगवान रघुनाथ के रथ तक पहुंचे पीएम मोदी भगवान रघुनाथ के आगे आगे सात मिनट, मंच से 10 मिनट तक दोनों हाथ जोड़कर रथ यात्रा निहारते रहे। रथ मैदान में सैंकड़ों देवताओं, हजारों लोगों की भीड़ के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 51 मिनट तक रुके।  
 

कुल्लू । भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)  बुधवार को अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा (International Kullu Dussehra) महोत्सव में भगवान रघुनाथ  की रथयात्रा के गवाह बने हैं। भगवान रघुनाथ की  कुल्लू दशहरा के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री आए। भगवान रघुनाथ के आगे नतमस्तक होकर आशीर्वाद लिया। रघुनाथ के आगे सात मिनट, मंच से 10 मिनट तक दोनों हाथ जोड़कर रथ यात्रा निहारते रहे। भगवान रघुनाथ की ओर से मोदी को बग्गा, दुपट्टा, फूलमाला और प्रसाद भेंट किया गया। रथ मैदान में सैंकड़ों देवताओं, हजारों लोगों की भीड़ के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 51 मिनट तक रुके।  

हालांकि, दशहरा महोत्सव का इतिहास 16वीं सदी से जुड़ा हुआ है। ऐसी धारणा है कि 1660 ईस्वी में पहली बार मेले की शुरुआत की गई थी। लेकिन आजाद भारत में ये पहला मौका है, जब कोई प्रधानमंत्री इस मेले के गवाह बने हों। प्रधानमंत्री करीब 3:20 बजे मैदान में पहुंचे। पहुंचते ही सबसे पहले जन अभिनंदन किया। विशेष मंच पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिमाचली टोपी पहनाकर मोदी का इस्तकबाल किया। इसके अलावा भगवान राम के परिवार की खूबसूरत तस्वीर भेंट की। मंच पर राज्यपाल भी मौजूद रहे।

लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक कुल्लू दशहरा के इतिहास में नरेंद्र मोदी का नाम भी जुड़ गया है, क्योंकि वो पहले प्रधानमंत्री हैं, जो इसके गवाह बने है। भगवान रघुनाथ के सेवक महेश्वर सिंह ने मंगलवार को इस बात का जिक्र किया था कि प्रदेश प्रभारी रहने के दौरान भी नरेंद्र मोदी इस महोत्सव को लेकर खासे उत्साहित हुआ करते थे। तकरीबन 3: 36 पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंच से नीचे उतरकर भगवान रघुनाथ जी की पालकी पर शीश नवाजने पहुंच गए।

देवता धूमल नाग ने भीड़ को किया नियंत्रित
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा देखने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में हजारों लोगों की भीड़ के बीच भगवान रघुनाथ के रथ के पास जा पहुंचे। इस दौरान ढालपुर मैदान में ट्रैफिक व्यवस्था संभालने वाले देवता धूमल नाग ने भीड़ को नियंत्रित किया और किसी को भी पीएम मोदी के करीब नहीं जाने दिया। यह नजारा देखने लायक था। प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान रघुनाथ के आगे शीश नवाकर आशीर्वाद लिया। सुरक्षा को पीछे छोड़ प्रधानमंत्री की तस्वीर क्लिक करने को बड़ी संख्या में लोग बेताब नजर आ रहे थे। प्रधानमंत्री ने शानदार आयोजन का गवाह बनने के लिए सुरक्षा के घेरे की भी कोई परवाह नहीं की। ऐसी भी धारणा है कि भगवान रघुनाथ के दर्शन वही कर सकता है, जिसे भगवान की अनुमति मिले। भव्य रथयात्रा शुरू होने के काफी देर बाद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नमन करते हुए मंच पर ही डटे रहे। जनसैलाब भी भगवान के दर्शन हेतु आतुर था।

पीएम मोदी ने माथा टेका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान रघुनाथ का आशीर्वाद लेने के लिए रघुनाथ के रथ के पास पहुंचे। भगवान रघुनाथ के आगे नतमस्तक हुए पीएम ने माथा टेका। भगवान रघुनाथ की ओर से पीएम मोदी को फूलों की माला, दुपट्टा और प्रसाद भेंट किया गया।
सीएम जयराम ठाकुर की तारीफ की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन को लेकर सीएम जयराम ठाकुर की सराहना की। पीएम ने कहा कि देश में हिमाचल पहला राज्य है जिसने ड्रोन नीति बनाई। आने वाले समय में इसका लोग बहुत लाभ उठाएंगे। आलू, फल ड्रोन से उठाकर बड़ी मंडी में पहुंचा सकते हैं। प्रदेश की सभी परियोजनाओं के लिए लोगों को एक बार फिर बधाई। पीएम मोदी ने भारत माता की जय के नारे लगाए।

 

  

पीएम मोदी बोले- हिमाचल के दोनों हाथों में लड्डू
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बल्क ड्रग पार्क में सिर्फ तीन राज्य हैं और उसमें हिमाचल को चुना गया है। हिमाचल वीरों की धरती है, मैंने यहां की रोटी खाई है, मुझे यहां का कर्ज चुकाना है। आज मेडिकल टूरिज्म का दौर है। हिमाचल में मेडिकल टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। जब लोग विदेशों से उपचार कराने हिमाचल आएंगे तो आरोग्य होकर भी जाएंगे और यहां की खूबसूरत वादियां भी देखेंगे। हिमाचल के दोनों हाथों में लड्डू है।

दीगर है कि जनता के लिए भी प्रधानमंत्री का करीब से अभिनंदन करना भी दुर्लभ ही होगा।   ढालपुर मैदान  से भव्य रथयात्रा शुरू हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मैदान से तकरीबन 10 से 30 मीटर दूर अटल सदन  में एक अलग मंच बनाया गया था। गौरतलब है कि भव्य रथयात्रा में हिस्सा लेने लगभग 250 देवी-देवता हिस्सा लेने पहुंचे हुए थे। रथयात्रा से पूर्व देवी-देवताओं ने देव परंपरा का निर्वहन करते हुए भगवान रघुनाथ से सुल्तानपुर स्थित मंदिर में मुलाकात कर शीष नवाजा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब पौने 3 बजे भुंतर एयरपोर्ट  पर लैंड हुए थे। भगवान रघुनाथ की भव्य यात्रा में ढोल नगाड़ों की थाप को कड़ी सुरक्षा के बीच ढालपुर मैदान तक लाया गया। दीगर है कि भुवनेश्वरी भेखली माता का इशारा मिलने के बाद रथ यात्रा का आगाज होता है। इस साल दशहरा महोत्सव का आयोजन 5 से 11 अक्तूबर तक किया जा रहा है। इस दौरान भगवान के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह विधिवत तरीके से सुबह-शाम पूजा-अर्चना करेंगे।

ये है जुड़ा इतिहास….
समृद्ध संस्कृति का परिचायक दशहरा महोत्सव पहली बार 1660 ईस्वी में मनाया गया था। उस समय राजा जगत सिंह का शासन था। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलने पर मेले के आयोजन का निर्णय हुआ था। मेले का निमंत्रण समीपवर्ती रियासतों के देवी-देवताओं को भी दिया गया। ऐसी किवदंती है कि 365 देवी-देवताओं ने शिरकत की थी। धीरे-धीरे ये मेला हर साल आयोजित किया जाने लगा। 21वीं सदी में इसे दशहरा उत्सव के तौर पर मनाया जाने लगा है।

 

मेले से जुड़ा एक रोचक वर्णन  भी मिलता है। राजा जगत सिंह ने 1637 से 1662 तक शासन किया। कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी। मणिकर्ण घाटी के टिप्परी गांव में एक गरीब ब्राह्मण दुर्गा दत्त रहता था। राजा को झूठी सूचना दी गई कि ब्राह्मण के पास डेढ़ किलो सुच्चे मोती है, जो राजभवन में होने चाहिए। तुरंत ही ब्राह्मण को राजभवन में बुला लिया गया। दरअसल, ब्राह्मण के पास सुच्चे मोती नहीं थे। राजा के डर से परिवार ने आत्मदाह कर लिया। इसकी जानकारी मिलने पर राजा जगत सिंह को बेहद ही अफसोस हुआ।

इतिहासकारों की मानें तो इस दोष के कारण राजा को कुष्ठरोग हो गया था। इसके बाद पयहारी बाबा किशन दास ने सलाह दी कि अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से रामचंद्र, माता सीता व रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाकर कुल्लू के मंदिर में स्थापित करें। साथ ही राजपाट भगवान रघुनाथ को सौंप दें। उसी सूरत में ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिलेगी।   1653 में रघुनाथ जी की प्रतिमा को मणिकर्ण मंदिर में रखा गया। 1660 में इसे विधि विधान के बाद कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया गया। राजा ने तमाम राजपाठ भी भगवान रघुनाथ जी के नाम कर दिया था, तथा खुद उनके छड़ी बरदार बने हैं।

कुल्लू के 365 देवी-देवताओं ने रघुनाथ जी को अपना इष्ट मान लिया। राजा को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलने के बाद हर साल उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हो गई। श्री रघुनाथ जी के सम्मान में ही राजा जगत सिंह ने 1660 में कुल्लू में दशहरे की परंपरा आरंभ की। ये आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक व व्यापारिक रूप से भी विशेष महत्व रखता है।