Himachal News : सरकारी स्कूल या तबेला ? शिक्षा की दुर्दशा पर सरकारी अनदेखी का काला सच
भरमौर। यह केवल एक स्कूल की कहानी नहीं, बल्कि सरकारी शिक्षा प्रणाली के खोखलेपन और जनजातीय क्षेत्रों में बच्चों के भविष्य की उपेक्षा का गंभीर नमूना है। जनजातीय क्षेत्र भरमौर के राजकीय उच्च विद्यालय सिंयुर का माहौल इतना बदहाल है कि बच्चों के क्लासरूम के पास ही मवेशियों को बांधा जा है। छात्रों को मवेशियों की रंभाने की आवाजों और गंदगी के बीच पढ़ाई करनी पड़ रही है, जो शिक्षा की प्राथमिकता पर सरकार के रवैये को उजागर करता है।
35 वर्षों से बच्चे बुनियादी सुविधाओं से वंचित
सिंयुर स्कूल निजी भवन में चल रहा है। ग्रामीण और अभिभावक पिछले 35 साल से एक स्थायी स्कूल भवन की मांग कर रहे हैं। लेकिन उनकी आवाजों को अनसुना कर दिया गया, जैसे उनके बच्चों का भविष्य किसी की चिंता का विषय ही न हो। इतने सालों से शिक्षा के बुनियादी अधिकारों से वंचित इन बच्चों के लिए यह स्कूल केवल एक सरकारी अनुदान से बनी जगह भर नहीं, बल्कि उनकी आकांक्षाओं का एक दफन सपना बनकर रह गया है।
हिमाचल की शिक्षा रैंकिंग में गिरावट : क्या शिक्षा का कोई मूल्य नहीं?
हालिया रिपोर्टों में हिमाचल प्रदेश शिक्षा के स्तर में शीर्ष तीन से गिरकर 21वें स्थान पर पहुंच गया है। इसके लिए सिर्फ शिक्षा विभाग को दोष देना काफी नहीं; प्रदेश की सरकार और स्थानीय प्रशासन भी इस गिरावट के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। स्कूल भवनों की कमी और अध्यापकों की अनुपलब्धता की समस्या के समाधान की बजाय सरकार आंखें मूंदे बैठी है। जिस राज्य को कभी शिक्षा का मॉडल माना जाता था, वहां अब बच्चों के लिए एक साधारण स्कूल भवन भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा।
"स्कूल बंद करने में सरकार को दिलचस्पी, लेकिन सुधार में नहीं" – विधायक की नाराजगी
अमर उजाला की रिपोर्ट (यहां पढ़ें) के मुताबिक भरमौर के विधायक डॉ. जनकराज, जो सोमवार को सिंयुर पंचायत के दौरे पर थे, बच्चों के निमंत्रण पर स्कूल पहुंचे। वहां उन्होंने स्कूल के बरामदे में मवेशियों को बंधा देखा, तो उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से इस बारे में सवाल किए। उन्हें बताया गया कि यह स्कूल 35 साल से ऐसे ही चल रहा है और किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने इसे लेकर कोई संज्ञान नहीं लिया। उन्होंने इस स्थिति पर रोष जताते हुए कहा कि मौजूदा कांग्रेस सरकार स्कूलों को बंद करने में तो लगी है, लेकिन जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा के बुनियादी ढांचे की बेहतरी पर उनका कोई ध्यान नहीं है।
"विधानसभा में उठाऊंगा मुद्दा, बच्चों का भविष्य दांव पर नहीं लगने दूंगा"
विधायक ने कहा कि इस स्कूल की बदतर स्थिति का मुद्दा वे विधानसभा में जोरदार तरीके से उठाएंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर के सामने भी इस समस्या को रखने का वादा किया। उनके अनुसार, "यह समय की मांग है कि सरकार जनजातीय क्षेत्रों की पाठशालाओं की हालत सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए। मैं इस मुद्दे को चंबा से लेकर शिमला तक उठाऊंगा और बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं होने दूंगा।"
35 सालों से प्रशासन की उपेक्षा, नेताओं का मौन
पिछले 35 सालों में भरमौर विधानसभा क्षेत्र से कई महत्वपूर्ण पदों पर नेता चुने गए। हिमाचल सरकार में कैबिनेट मंत्री और विधानसभा के अध्यक्ष तक भरमौर के विधायक बने हैं। बावजूद इसके किसी ने भी इस स्कूल के लिए भवन की व्यवस्था करने की जहमत नहीं उठाई। क्या जनजातीय क्षेत्रों के बच्चों का भविष्य प्रशासन और नेताओं की प्राथमिकता सूची में नहीं आता? यह एक बड़ा सवाल है, जो सीधे-सीधे हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
एडीएम का तर्क: "मवेशियों के बांधने की जानकारी नहीं"
भरमौर के एडीएम कुलबीर सिंह राणा का कहना है कि स्कूल निजी भवन में चल रहा है और मवेशियों के बांधने की जानकारी उन्हें नहीं थी। लेकिन सवाल यह है कि सरकारी अधिकारी इस तरह के मुद्दों से अनजान क्यों हैं? क्या यह उनका दायित्व नहीं है कि वह स्कूलों की स्थिति पर नज़र रखें और समस्याओं का समाधान करें? अधिकारियों की इस तरह की उदासीनता, शिक्षा व्यवस्था पर एक धब्बा है।
शिक्षा के नाम पर केवल दिखावा: सरकारी योजना और हकीकत में अंतर
सरकारें बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती हैं – 'सबको शिक्षा', 'सर्व शिक्षा अभियान' – लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत दूर है। भरमौर के इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के लिए उपयुक्त माहौल नहीं मिल रहा, जबकि सरकार शिक्षा में सुधार के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। सवाल उठता है कि ये फंड आखिर कहां जा रहे हैं? क्यों शिक्षा के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं उन बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहीं, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है?
सरकार और प्रशासन से जवाबदेही की मांग
इस स्थिति में सरकार को सिर्फ कागजी योजनाएं पेश करने की बजाय जमीनी हकीकत पर ध्यान देने की जरूरत है। जनजातीय क्षेत्रों में बच्चों के लिए एक उचित पढ़ाई का माहौल सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर प्रशासन की नींद अब भी नहीं खुलती, तो जनजातीय क्षेत्रों के लोग अपने बच्चों के लिए न्याय की मांग के साथ सरकार के खिलाफ आवाज उठाने को मजबूर हो सकते हैं।
अभी भी वक्त है कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर सही कदम उठाए, ताकि हिमाचल प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो सके और बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो।