हिमाचल हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशक को कड़ी फटकार लगाई, जानें क्या है मामला

कोर्ट ने पाया कि निदेशक ने 27 जुलाई को जारी निर्देशों में कोर्ट के 4 महीनों के भीतर याचिकाकर्ताओं को लाभ देने के आदेशों में रुकावट डालने की कोशिश की है, जिससे लाभ किश्तों में जारी करने के निर्देश दिए गए।
 

शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रारंभिक शिक्षा निदेशक को कोर्ट के आदेशों की अनुपालना में अड़ंगा डालने पर कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने पाया कि निदेशक ने 27 जुलाई को जारी निर्देशों में कोर्ट के 4 महीनों के भीतर याचिकाकर्ताओं को लाभ देने के आदेशों में रुकावट डालने की कोशिश की है, जिससे लाभ किश्तों में जारी करने के निर्देश दिए गए।

न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने निदेशक के इस आचरण को अवमाननापूर्ण माना है। कोर्ट ने कहा कि वित्त विभाग के निर्देशों का हवाला देकर वित्तीय लाभ किश्तों में जारी करने के निदेशक के निर्देश न्यायालय के आदेशों का अतिक्रमण करते हैं। कोर्ट ने चेतावनी दी कि निदेशक को उत्तरदायी ठहराकर दंडित किया जा सकता है और आवश्यक होने पर कारावास में भी डाला जा सकता है।

न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि उत्तरदाताओं की ओर से ऐसा आचरण अवमाननापूर्ण प्रकृति का है। कोर्ट ने कहा कि निदेशक के खिलाफ अवमानना के प्रावधानों को लागू किए बिना भी उनका आचरण न केवल न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की अवज्ञा के लिए बल्कि न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के विपरीत कार्यालय आदेश जारी करके न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों का अतिक्रमण करना न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के गैर-क्रियान्वयन के समान है। अपने आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए निदेशक को उत्तरदायी और दंडित किया जा सकता है और कारावास में डाला जा सकता है।

यह मामला जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) अध्यापकों से संबंधित है, जिनके अनुबंध वाली सेवाओं को पेंशन और वार्षिक वेतन वृद्धि के लिए गिनने के आदेश कोर्ट ने दिए थे। शिक्षा विभाग को 4 महीने के भीतर देय वित्तीय लाभों का भुगतान करने का निर्देश 29 अगस्त 2023 को जारी किया गया था। निदेशक के आदेशों से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं को अभी तक पूर्ण लाभ नहीं मिले हैं, जो कोर्ट के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है।

कोर्ट ने अपने आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए निदेशक को चेतावनी दी है कि अगर भविष्य में ऐसे आचरण दोहराए गए तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह निर्णय न्यायालय के आदेशों की सख्ती से पालन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है।