चम्बा की सूही जातर को मिला जिला स्तरीय मेले का दर्जा, जानें क्या है मेले का इतिहास

हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा में मनाए जाने वाले सूही जातर मेले को जिला स्तरीय मेले का दर्जा मिल गया है। इसके साथ ही चम्बा शहर के साथ सटे साहो क्षेत्र के जातर मेले को भी जिला स्तरीय मेले का दर्जा दिया गया है।
 

चम्बा। हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा में मनाए जाने वाले सूही जातर मेले को जिला स्तरीय मेले का दर्जा मिल गया है। इसके साथ ही चम्बा शहर के साथ सटे साहो क्षेत्र के जातर मेले को भी जिला स्तरीय मेले का दर्जा दिया गया है। वीरवार को शिमला में हुई हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया है। चम्बा शहर के साथ सटे क्षेत्र के दो प्रमुख मेलों को जिला स्तरीय मेले का दर्ज मिलने से क्षेत्र के लोगों में खुशी की लहर है।

बता दें कि हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला के मुख्यालय में स्थित पिंक पैलेस में सूही माता के चिह्नों की पूजा-अर्चना के साथ तीन दिवसीय ऐतिहासिक जातर मेला मनाया जाता है। चम्बा की रानी सुनयना की याद में हर वर्ष मनाए जाने वाले सूही जातर मेले में गद्दी समुदाय की महिलाएं, विद्यालयों की छात्राएं और शहर की महिलाएं विशेष रूप से भाग लेती हैं। गद्दी समुदाय की महिलाएं घुरेई गायन करती हैं। इसे सुनकर और देखकर सबकी आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित होती है। 


बता दें कि देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा में मनाए जाने वाले सूही मेले में केवल महिलाएं और बच्चे ही उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। चम्बा की रानी सुनयना के बलिदान की गाथा समेटे इस मेले से पुरुषों का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। छठी शताब्दी में चम्बा की रानी सुनयना प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जिंदा जमीन में दफन हो गई थीं। इसका उल्लेख साहिल बर्मन के पुत्र युगाकर बर्मन के एक ताम्रलेख में भी मिलता है। 

कहा जाता है कि चम्बा नगर की स्थापना के समय यहां पानी की बहुत समस्या थी। इसे दूर करने के लिए चम्बा के राजा ने सरोथा नाला से कूहल के माध्यम से नगर तक पानी लाने का आदेश दिया था। राजा के आदेश पर कूहल का निर्माण किया गया। मगर इसमें पानी नहीं आया। कथा के अनुसार एक रात राजा को स्वप्न में आकाशवाणी सुनाई दी, जिसमें कहा गया कि कूहल में तभी पानी आएगा, जब पानी के मूल स्त्रोत पर रानी या एक पुत्र को जीवित जमीन में दफना दिया जाए। 

राजा इस स्वप्न को लेकर काफी परेशान रहने लगा। इस बीच रानी सुनयना ने राजा से परेशानी की वजह पूछी तो उसने स्वप्न की सारी बात बता दी। लिहाजा रानी ने खुशी से प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने की बात कह डाली। हालांकि राजा और प्रजा नहीं चाहती थी कि रानी पानी की खातिर अपना बलिदान दें, लेकिन रानी ने अपना हठ नहीं छोड़ा और लोकहित में जिंदा दफन होने के लिए सबको मना भी लिया। 

कहा जाता है कि जिस वक्त रानी पानी के मूल स्त्रोत तक गई तो उसके साथ अनेक दासियां, राजा, पुत्र और हजारों की संख्या में लोग भी पहुंच गए थे। बलोटा गांव से लाई जा रही कूहल पर एक बड़ी क्रब तैयार की गई और रानी साज-शृंगार के साथ जब क्रब में प्रवेश कर गईं तो पूरी घाटी आंसुओं से सराबोर हो गई। कहा जाता है कि क्रब से जैसे-जैसे मिट्टी भरने लगी, कूहल में भी पानी चढ़ने लग पड़ा। 

चम्बा शहर के लिए आज भी इसी कूहल में पानी बहता है, लेकिन वक्त के साथ-साथ शहर में अब नलों के जरिए इस कूहल का पानी पहुंचाया जाता है। इस तरह चम्बा नगर में पानी आ गया और राजा साहिल बर्मन ने रानी की स्मृति में नगर के ऊपर बहती कूहल के किनारे रानी की समाधि बना दी। इस समाधि पर रानी की स्मृति में एक पत्थर की प्रतिमा विराजमान है, जिसे आज भी चम्बा के लोग विशेषकर औरतें अत्यन्त श्रद्धा से पूजती हैं। 

प्रति वर्ष रानी की याद में 15 चैत्र से पहली बैशाखी तक मेले का आयोजन किया जाता है जिसे सूही मेला कहते हैं। मेले का नाम रानी सुनयना देवी के पहले अक्षर से रखा लगता है। इस मेले में केवल स्त्रियां और बच्चे ही जाते हैं। महिलाएं रानी की प्रशंसा में लोकगीत गाती हैं और समाधि तथा प्रतिमा पर फूल की वर्षा की जाती है।